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________________ कनक के शुभ पहुप बनावहूँ। विधि अनेकन के शुभ ल्यावहूँ।। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय कामवाणविनाशनाय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा। नशत रोग क्षुधा तिहिं देखते। इमि सु व्यञ्जन लय प्रमोदते।। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। ज्वलित दीपक जोति प्रकाश ही। दश दिशा उजियार सुभास ही।। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। दहन कीजे धूप मँगाय के। अगनि में प्रभु सन्मुख आय के।। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। क्रमुक दाख बदाम निकोतमा। सरस ले अह लै कम होत ना।। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा। दोहा जल चन्दन अक्षत पहुप, चरु वर दीपक आनि। धूप और फल मेलि के, अध्य चढ़ाऊँ जानि।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 354
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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