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________________ श्री कुन्थुनाथ जिन-पूजा (रचयिता - कविवर मनरंगलाल) स्थापना- गीता छन्द शुभ नागपुर जहां सूर राजा, पट्टरानी श्रीमती। जिन-कुन्थु जिन घर पुत्र हुये, सरवार्थ सिधि तें आगही।। वपु कनक छवि धरि धनुष पैंतिस, छाग चिन्ह विराजही। आयुष्य पञ्चानव सहस की, वंश कुरु मधि छाजही।। मालती छन्द सा जिनराज गरीब-निबाज, निबाजहु मोहि यहां पग धारो। पूजों जो मनल्याय भली विधि, आज गरीबन को हित पारो।। काल अनादि तनी दुविधा मुझ, सो अबके दुविधा पद टारो। मैं भवकूप परो जिनजीजो, आपन जानि सिताव निकारो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (इति आह्वाननम्) ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठौ तिष्ठौ ठः ठः। (स्थापनम्) । ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितौ भव भव वषट् (सन्निधिकरणम्) अष्टक द्रुतविलम्बित छन्द अमल नीर सुभिक्षुक चित्त सो, परम कुम्भ भरे लब नित्य सो। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। अधिक शीतल चन्दन ल्याय के। अधिक सो कर्पूर मिलाय के।। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। सदक उज्ज्वल खण्ड विहाय के। सुभग मन्द प्रक्षालित भाव के।। यजन कुन्थु जिनेश्वर की करों, जिमि न जाचक की पदवी धरो।। ओं ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। 353
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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