SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 42 धवला उद्धरण होने से 'परमात्मा' इस संज्ञा को प्राप्त कर लिया है, वह इन्द्रिय आदि की अपेक्षा न रखने वाले ऐसे असहाय ज्ञान और दर्शन से युक्त होने के कारण केवली और तीनों योगों से युक्त होने के कारण सयोगी कहा जाता है, ऐसा अनादि निधन आर्ष में कहा है।।124-125।। अयोग केवली गुणस्थान सेलेसि संपतो णिरुद्ध - णिस्से - आसवो जीवो । कम्मरय-विप्पमुक्को गय-जोगो केवली होई । । 126 ।। जिन्होंने अठारह हजार शील के स्वामीपने को प्राप्त कर लिया है, अथवा जो मेरु के समान निष्कम्प अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं, जिन्होंने संपूर्ण का निरोध कर दिया है, जो नूतन बँधने वाले कर्म रज से रहित हैं और जो मन, वचन तथा काय योग से रहित होते हुए केवलज्ञान से विभूषित हैं, उन्हें अयोग केवली परमात्मा कहते हैं। । 126 ।। सिद्ध का स्वरूप से अट्ठविह-कम्म-विजडा सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा । अट्ठ- गुणा किदिकच्चा लोयग्ण - णिवासिणो सिद्धा ।।127॥ जो ज्ञानावरणादि आठ कर्मों से सर्वथा मुक्त हैं, सब प्रकार के दुःखों मुक्त होने से शांति सुखमय हैं, निरंजन हैं, नित्य हैं, ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, अव्याबाध, अवगाहन, सूक्ष्मत्व और अगुरुलघु इन आठ गुणों से युक्त हैं, कृतकृत्य हैं और लोक के अग्रभाग में निवास करते हैं, उन्हें सिद्ध कहते हैं। 127॥ नारत (नारक) का स्वरूप ण रमंति जदो णिच्चं दव्वे खेत्ते य काल - भावे य। अण्णोणेहि य जम्हा तम्हा ते णारया भणिया ।। 128 ।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy