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________________ 291 5/7 145 32 144 95 22 172 171 105 106 39 34 गाथानुक्रमणिका वयणं दु समभिरुढं वय-समिइ-कसायाणं ववहारस्स दु वयणं जइया वाउब्भामो उक्कलि वारस दस अट्ठेव य वारस दस अट्ठेव य वासस्स पढममासे वासस्स पढममासे वासाणूणत्तीसं पंच वाहिरसूईवग्गो विक्खंभवग्गदसगुण विकहा तहा कसाया विग्गह-गइमावण्ण विगतार्थागमने वा विघ्नाः प्रणश्यन्ति भयं न जातु विणएण सुदमधीदं विणएण सुदमधीदं विधिविषक्त प्रतिषेधरूपः वियोजयति चासुभिर्न च वधे विरलिदइच्छं विगुणिय विरियोवभोग-भोगे विरोधान्नोभयकात्म्य विवरीयमोहिणाणं विविह-गुण-इडिढ-जुत्तं विविह-गुण-इडिढ-जुत्तं विविहं पदमुद्दिजें विस-जंत-कूड-पंजर विसमगुणादेगूणं विसमं हि समारोह 92/1 2/7 152/1 66/3 67/3 56/1 40/9 35/9 5/4 8/4 114/1 99/1 98/9 21/1 22/9 116/9 18/7 6/14 25/10 11/7 15/15 181/1 161/1 162/1 19/13 179/1 24/10 22/13 184 13 168 189 148 240 199 143 251 57 52 233 57 199 217
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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