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________________ 228 धवला उद्धरण हुए ईर्ष्या, विषाद और शोक आदि मानसिक दुःखों से भी नहीं बाधा जाता है।।70।। सीयायवादिएहि मि सारीरेहि बहुप्पयारेहिं । णो बाहिज्जइ साहू ज्झेयम्मि सुणिच्चलो संतो ।। 71।। ध्येय में निश्चल हुआ वह साधु शीत व आतप आदिक बहुत प्रकार की शारीरिक बाधाओं के द्वारा भी नहीं बाधा जाता है।।71।। अविदक्कमवीचारं सुहुमकिरियबंधणं तदियसुक्कं । सुहुमम्मि कायजोगे भणिदं तं सव्वभावगयं ।। 72 ।। तीसरा शुक्लध्यान अवतिर्क, अवीचार और सूक्ष्म क्रिया से सम्बन्ध रखने वाला होता है, क्योंकि काययोग के सूक्ष्म होने पर सर्वभावगत यह ध्यान कहा गया है।।72।। तृतीय शुक्ल ध्यान सुहुमम्मि कायजोगे वट्टतो केवली तदियसुक्कं । ज्झायदि णिरुभिदु जो सुहुमं तं कायजोगं पि ।। 73 || जो वली जिन सूक्ष्म काययोग में विद्यमान होते हैं वे तीसरे शुक्लध्यान का ध्यान करते हैं और उस सूक्ष्म काययोग का भी निरोध करने के लिये उसका ध्यान करते हैं ||73 || तोयमिव गालियाए तत्तायसभायणोदरत्थं वा । परिहादि कमेण तहा जोगजलं ज्झाणजलणेण ।।74 || जिस प्रकार नाली द्वारा जल का क्रमशः अभाव होता है, या तपे हुए लोहे के पात्र में स्थित जल का क्रमशः अभाव होता है, उसी प्रकार ध्यानरूपी अग्नि के द्वारा योगरूपी जल का क्रमशः नाश होता है।।74।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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