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________________ 208 धवला उद्धरण आयु को छोड़कर शेष कर्मों का अनुभाग के बिना भी स्थितिघात होता. है।।1।। अणुभागे हंमंते ट्ठिदिघादो आठआण सव्वेसिं । ठिदिघादेण विणा वि हु आउववज्जाणमणुभागो ।।2।। अनुभाग का घात होने पर जब आयुओं का स्थितिघात होता है। स्थितिघात के बिना भी आयु को छोड़कर शेष कर्मों के अनुभाग का घात होता है ॥2॥ सूत्र का लक्षण अर्थस्य सूचनात्सम्यक्सू ते वर्थस्य सूरिणा । सूत्रमुक्तमनल्पार्थ सूत्रकारेण तत्त्वतः ।। 3 ।। भली भाँति अर्थ का सूचक होने से अथवा अर्थ का जनक होने से बहुत अर्थ का बोधक वाक्य सूत्रकार आचार्य के द्वारा यथार्थ में सूत्र कहा गया है । 3 ॥ बुद्धिविहीने श्रोतरि वक्तृत्वनर्थकं भवति पुंसाम् । नेत्रविहीने भर्तरि विलास - लावण्यवत्स्त्रीणाम् ॥4॥ जिस प्रकार पति के अन्धे होने पर स्त्रियों का विलास व सुन्दरता व्यर्थ (निष्फल) है, इसी प्रकार श्रोता के मूर्ख होने पर पुरुषों का वक्तापन भी व्यर्थ है॥4॥ सुहुमणुभागादुवरिं अंतरमकंद ति घादिकम्माणं । केवलिणो वि य उवरिं भवओग्गह अप्पसत्थाणं ||5|| कारण कि जघन्य क्षेत्र के साथ रहने वाले ज्ञानावरण के अनुभाग का अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्परायिक और क्षीणकषाय परिणामों द्वारा काण्डक स्वरूप से और अनुसमयापवर्तना से जघन्य अनुभाग के समान घात नहीं होता है। यद्यपि सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक का अनुभाग
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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