SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धवला उद्धरण 202 निक्षेप की विशेषता अवगयणिवारण पयदस्स परूवणाणिमित्तं च। संसयविणासणठें तच्चत्थवहारणटुं च।।1।। अप्रकृत का निवारण करने के लिये, प्रकृत की प्ररूपणा करने के लिये, संशय को नष्ट करने के लिये और तत्त्वार्थ का निश्चय करने के लिये निक्षेप किया जाता है।।1।। काल के भेदों का स्वरूप कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो। दोण्णं एस सहाओ वालो खणभंगुरो णियदो।।1।। समयादिरूप व्यवहारकाल चूकि जीव व पुद्गल के परिणमन से जाना जाता है, अतः वह उससे उत्पन्न कहा जाता है और जीव व पुद्गल का परिणाम चकि द्रव्यकाल के होने पर होता है. अत एव वह द्रव्यकाल से उत्पन्न कहा जाता है। इनमें व्यवहारकाल क्षणक्षयी और निश्चयकाल अविनश्वर है।।।1।। काल का स्वरूप ण य परिणमइ सयं सो ण य परिणामेइअण्णमण्णेसि। विविहपरिणामियाणं हवइ हु हेऊ सयं कालो।।2।। वह काल न स्वयं परिणमता है और न अन्य पदार्थ को अन्य स्वरूप से परिणमाता है, किन्तु स्वयं अनेक पर्यायों में परिणत होने वाले
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy