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________________ 196 धवला उद्धरण स्पष्ट रूप से विशेषों की संख्या आती है(?)।।9।। रूवूणिच्छागुणिदं पचयं सादिं गुणेउ फालीहि । तिणे गादिति उत्तरविसे ससंखाणमेदि फुडं ।10।। एक कम इच्छाराशि से गुणित प्रचय को पुनः फालियों की संख्या से गुणा करने पर स्पष्ट रूप से तीन एक आदि तीनोत्तर विशेषों की संख्या आती है (?)।।10।। इच्छहिदायामेण य रूवजुदेणवहरेज्ज विक्ख'भं । लद्धं दीहत्तजुदं इच्छिदहारो हवइ एवं ।11।। रूपाधिक इच्छित आयाम से विस्तार को अपहृत करना चाहिये। ऐसा करने से जो लब्ध हो उसमें दीर्घता को मिलाने पर इच्छित भागहार होता है।।11।। सोलसयं छप्पण्णं तत्तो गोवुच्छविसेसएण अहियाणि । जाव दु बे सद सोलस तत्तो य विसद छप्पण्णं ।।12।। अडदाल सीदि बारसअहियसदं तह सदं च चोद्दालं । छावत्तरि सदभेयं अट्ठत्तर - विसद - छप्पण्णं ।।13।। सोलह, छप्पन इससे आगे दो सौ सोलह प्राप्त होने तक एक गोपुच्छ विशेष (32) से उत्तरोत्तर अधिक, इसके पश्चात् दो सौ छप्पन तथा अड़तालीस, अस्सी, एक सौ बारह, एक सौ चवालीस, एक सौ छिहत्तर, दो सौ आठ और दो सौ छप्पन ये चतुर्थ क्षेत्र के खण्डों का प्रमाण है।।12-13।। गच्छ का प्रमाण घणमट्ठत्तरगुणिदे विणुगादीउत्तरूणवग्गजुदे । मूलं परिमूलूणं बिगुणुत्तरभागिदे गच्छो ।।14।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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