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________________ धवला उद्धरण 176 पदार्थों के विनाश में जाति अर्थात् उत्पत्ति ही कारण मानी जाती है, क्योंकि जो पदार्थ उत्पन्न होते ही नष्ट नहीं होता तो फिर वह पश्चात् आपके यहाँ किसके द्वारा नष्ट होगा? अर्थात् किसी के द्वारा नष्ट नहीं हो सकेगा।।57।। नयवाद और परसमय जावदिया वयणवहा तावदिया चे होंति णयवादा। जावदिया णयवादा तावदिया चेव होंति परसमया ।। 58।। जितने वचन मार्ग हैं उतने ही नयवाद हैं तथा जितने नयवाद हैं उतने ही परसमय हैं। 58।। नय की विशेषता यथैककं कारककर्मसिद्धये समीक्ष्य शेष स्वसहायकारकम् । तथैव सामान्य-विशेषामातृका नयास्तवेष्टय गुण-मुख्यकल्पतः॥59 जिस प्रकार एक कारक शेष को अपना सहायक कारक मान करके प्रयोजन की सिद्धि के लिये होता है, उसी प्रकार सामान्य व विशेष धर्मों से उत्पन्न नय आपको मुख्य और गौण की विवक्षा से इष्ट हैं। 59 1 य एव नित्य-क्षणिकादयो नयाः मिथोऽनपेक्षाः स्व- परप्रणशिनः । त एव तत्त्वं विमलस्य ते मुनेः परस्परेक्षाः स्व-परोपकारिणः।।60।। जो नित्य व क्षणिक आदि नय परस्पर में निरपेक्ष होकर अपना व पर का नाश करने वाले हैं वे ही आप विमल मुनि के यहाँ परस्पर की अपेक्षा युक्त हो अपने व पर के उपकारी हैं। 16011 मिथ्यासमूहो मिथ्या चेत्र मिथ्यैकान्तास्ति नः । निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेऽर्य औत् ॥61।। मिथ्यानयों का विषय-समूह मिथ्या है, ऐसा कहने पर उत्तर देते हैं
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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