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________________ धवला पुस्तक 9 संज्ञी का चक्षु इन्द्रिय विषय प्रमाण सत्तेतालसहस्सा बे चेव सया हवंति तेवट्ठा। चक्खिदियस्स विसओ उक्कस्सो होदि अदिरित्तो ॥53॥ चक्षु इन्द्रिय का उत्कृष्ट विषय सैंतालीस हजार दो सौ तिरेसठ योजन से कुछ अधिक (7/20) है।15311 175 पुट्ठ सुणेइ सद्द अप्पुट्ठ पस्सदे रूवं । गंध रसं च फासं बद्धं पुट्ठ जाणादि । 154 ।। श्रोत्र से स्पृष्ट शब्द को सुनता है, परन्तु चक्षु से रूप को अस्पृष्ट ही देखता है। शेष इन्द्रियों से गन्ध, रस और स्पर्श को बद्ध व स्पृष्ट जानता है।54।। स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यंजको नयः ।।55।। इति नय को जो मोक्ष का कारण बतलाया है उसका हेतु पदार्थों की यथार्थोपलब्धि-निमित्तत्ता है |55|| सत्ता सव्वपयत्था सविस्सरूवा अणतपज्जाया। भंगुप्पाय - धुवत्ता सप्पडिक्क्खा हवदि एक्का ।।56।। अस्तित्व रूप सत्ता उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य रूप तीन लक्षणों से युक्त समस्त वस्तु विस्तार के सादृश्य की सूचक होने से एक है उत्पादादि त्रिलक्षण स्वरूप ‘सत्' इस प्रकार के शब्द व्यवहार एवं 'सत्' इस प्रकार के प्रत्यय के भी पाये जाने से समस्त पदार्थों में स्थित है विश्व अर्थात् समस्त वस्तुविस्तार के त्रिलक्षण रूप स्वभावों से सहित होने के कारण सविश्व रूप है, अनन्त पर्यायों से सहित है, भंग (व्यय), उत्पाद व ध्रौव्य स्वरूप है तथा अपनी प्रतिपक्षभूत असत्ता से संयुक्त है ||56|| जातिरेव हि भावानां निरोधे हेतुरिष्यते । यो जातश्च न च ध्वस्तो नश्यते पश्चात् स केन वः ॥ 157 ॥
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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