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________________ धवला उद्धरण 164 नवम काण्डक में क्षेत्र जम्बूद्वीप और काल एक मास से कुछ अधिक है। दशवें काण्डक में क्षेत्र मनुष्यलोक और काल एक वर्ष प्रमाण है। ग्यारहवें काण्डक में क्षेत्र रुचकद्वीप और काल वर्षपृथक्त्व प्रमाण है।।7।। भवनत्रिकों का अवधिज्ञान का क्षेत्र पणुवीस जोयणाणि ओही वेंतर-कारवग्गाणं। संखज्जजोयणाणि जोइसियाणं जहण्णो ही।8।। व्यन्तर और भवनवासी देवों का जघन्य अवधि क्षेत्र पच्चीस योजन और ज्योतिषी देवों का जघन्य अवधि क्षेत्र संख्यात योजन प्रमाण है।।8।। असुराणमसंखोज्जा कोडीओ सेसजोदिसंताणं। संखातीदसहस्सा उक्कस्सो ओहिविसओ दु।9।। असुरकुमार देवों के उत्कृष्ट अवधिज्ञान का विषयभूत क्षेत्र असंख्यात करोड योजन है। शेष नौ प्रकार के भवनवासी, व्यन्तर एवं ज्योतिषी देवों का उत्कृष्ट अवधि क्षेत्र असंख्यात हजार योजन प्रमाण है।।9।। वैमानिकों का अवधिज्ञान क्षेत्र सक्कीसाणा पढमं दोच्चं तु सणक्कुमार-माहिदा। तच्चं तु बम्ह-लैय सुक्क-सहस्सारया चोत्थ।।10।। सौधर्म और ईशान स्वर्ग के देव प्रथम पृथिवी तक, सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देव द्वितीय पृथिवी तक, ब्रह्म और लान्तव कल्पों के देव तृतीय पृथिवी तक तथा शुक और सहस्रार स्वर्गों के देव चतुर्थ पृथिवी तक देखते हैं।।10।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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