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________________ धवला उद्धरण 152 व माहेन्द्र कल्प में छह रत्नि ऊँचे होते हैं।।2।। बम्हे य लांतर वि य कप्पे खलु होंति पंच रयणीयो। चत्तारि य रयणीयो सुक्क-सहस्सारकप्पेसु।।3।। ब्रह्म व लान्तव कल्प में पांच तथा शुक्र व सहस्रार कल्पों में चार रत्नि प्रमाण उत्सेध है।।3।। आणद पाणदकप्पे आहुट्ठाओ हवंति रयणीयो। तिण्णव य रयणीओ तहारणे अच्चुदे चेय।।4।। आनत-प्राणत कल्प में साढ़े तीन रत्नि और आरण व अच्युत कल्प में एक रत्नि प्रमाण शरीर की ऊँचाई जानना चाहिये।।4।। हेट्ठिमगेवज्जेसु अ अड्ढाइज्जाओ होंति रयणीओ। मज्झिमगेवज्जेसु अ रयणीओ होंति दो चेय।।5।। अधस्तन ग्रैवेयकों में अढ़ाई रत्नि और मध्यम प्रैवेयकों में दो रत्निप्रमाण शरीर की ऊँचाई है।।5।। उवरिमगेवज्जेसु अ दिवट्ठरयणीओ होदि उस्सेहो। अणुत्तरविमाणवासी णेया रयणी मुणेयव्वा।।6।। उपरिम ग्रैवेयकों में डेढ़ रत्नि तथा अनुत्तर विमानवासी देवों के शरीर की ऊँचाई एक रत्नि प्रमाण जानना चाहिये।।6।। पृथ्वियों में शीत-उष्णता षष्ठ-सप्तमयोः शीतं शीतोष्णं पंचमे स्मृतम्। चतुव॒त्यु ष्णमुद्दिष्टस्तासामेव महीगुणा।।1।। छठी और सातवीं पृथिवी में शीत तथा पांचवीं में शीत व उष्ण दोनों माने गये हैं। शेष चार पृथिवियों में अत्यन्त उष्णता है। ये उनके ही पृथ्विीगुण हैं।।1।।
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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