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________________ धवला पुस्तक 7 151 वर्गमूल अवहार काल है।।1।। तल्लीनमधुगविमलं धूमसिलागाविचारभयमेरू। तटहरिखझसा होति हु माणुसपज्जत्त संखंका।।2।। तकारादि अक्षरों से सूचित क्रमशः छह, तीन, तीन, शून्य, पाँच, नौ, तीन, चार, पाँच, तीन, नौ, पाँच, सात, तीन, तीन, चार, छह, दो, चार, एक, पाँच, दो, छह, एक, आठ, दो, दो, नौ और सात ये मनुष्य पर्याप्त राशि की संख्या के अंक हैं।।2।। निरस्यति परस्यार्थ स्वार्थ कथयति श्रुतिः। तमो विधुन्वती भास्यं यथा भासयति प्रभा।।3।। जिस प्रकार प्रभा अन्धकार को नष्ट करती हुई प्रकाशनीय पदार्थ का प्रकाशन करती है, उसी प्रकार श्रुति पर के अभीष्ट का निराकरण करती है और अपने अभीष्ट अर्थ को कहती है।।3।। खेत्ताणुगमोत्ति समत्तमणिओगद्दारं भवनत्रिक की अवगाहना पणुवीसं असुराणं सेसकुमाराण दस धणू होंति। वेंतर-जोदिसियाणं दस सत्त धणू मुणेयव्वा।।1।। असुरकुमारों के शरीर की ऊँचाई पच्चीस धनुष और शेष कुमार देवों की दश धनुष होती है। व्यन्तर देवों की ऊँचाई दश धनुष और ज्योतिषी देवों की सात धनुष प्रमाण जानना चाहिये।।1।। वैमानिक देवों की अवगाहना सोहम्मीसाणेसु य देवा खलु होति सत्तरयणीया। छच्चेव य रयणीयो सणक्कुमारे य माहिंदे।।2।। सौधर्म व ईशान कल्प में स्थित देव सात रत्नि ऊँचे और सनत्कुमार
SR No.009235
Book TitleDhavala Uddharan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir
Publication Year2016
Total Pages302
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size524 KB
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