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________________ १२४] [प्रतिक्रमण-आवश्यक तेथी ते परिवर्तन करवामां पण सहकारी छे. परंतु ओक पुद्गलद्रव्य ज मारुं बहु अहित करनार छे. केमके पुद्गलद्रव्य नोकर्म तथा कर्मस्वरूपमा परिणत थइ मारा आत्मा साथे संबंध करे छे. अने तेनी कृपाथी मारे नाना प्रकारनी गतिओमां भ्रमण करवू पडे छे तेम ज मने सत्यमार्ग पण सूझतो नथी. तेथी भेदविज्ञानरूप तलवारथी में तेना खंड-खंड ऊडावी दीधा छे. २६. अर्थ :-जीवोना नाना प्रकारना रागद्वेष करनारा परिणामोथी जे प्रमाणे पुदगल द्रव्य परिणमे छे ते प्रमाणे धर्म, अधर्म, आकाश अने काल-अ चार अमूर्त द्रव्यो रागद्वेष करनारा परिणामोथी परिणमता नथी, ते रागद्वेष-द्वारा प्रबळ कर्मोनी उत्पत्ति थाय छे अने ते कर्मोथी संसार ऊभो थाय छे. तेथी संसारमा अनेक प्रकारना दुःखो भोगववा पड़े छे. माटे कल्याणनी इच्छा राखनार सज्जनोजे ते राग अने द्वेष सर्वथा छोडवा जोइओ." अर्थ :-पुद्गलना अनेक परिणाम थाय छे तेमां जे रागद्वेष, पुद्गलना परिणाम छे तेनाथी आत्मामां कर्म सदा आवी बंधाया करे अने ते कर्मोने लीधे आत्माने संसारमा परिभ्रमण करवू पडे छे तथा त्यां तेने विविध प्रकारना दु;खो सहन करवां पडे छे. माटे भव्य जीवोओ ओवा परम अहित करनार रागद्वेषनो त्याग अवश्यमेव करी देवो जोइओ. आनंदस्वरूप शुद्धात्मानुं ध्यान अने मनन : २७. अर्थ:-हे मन ! बाह्य तथा ताराथी भिन्न जे स्त्री, पुत्र आदि पदार्थो छे तेमनामां रागद्वेषस्वरूप अनेक प्रकारना विकल्पो करी तुं शा माटे दुःखद अशुभ कर्मो फोकट बांधे छे ? जो तुं आनंदरूप जळना समुद्रमां शुद्धात्माने पामी तेमां निवास करीश तो तुं निर्वाणरूप विस्तीर्ण सुखने अवश्य प्राप्त करीश. अटला माटे, तारे आनंदस्वरूप
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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