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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] [१२३ ज पर्यायो छे. वळी ताराथी भिन्न छे तोपण, बहु खेदनी वात ओ छे के तुं तेमने पोताना मानी तेमनो आश्रय करे छे तेथी शुं तुं दृढ बंधनथी बंधाइश नहि? अवश्य बंधाइश. भावार्थ:-हे आत्मन् ! तुं तो निर्विकार चैतन्यस्वरूपी छो, समस्त लोक तथा शरीर, ईंद्रिय द्रव्य, वचन आदि सर्व पदार्थो पुद्गल द्रव्यना पर्याय छे अने ताराथी भिन्न छे, ओम होवा छतां पण, जो तुं तेमने पोताना समजी तेमनो आश्रय करीश तो तुं अवश्यमेव बंधाइश; तेथी ते सर्व परपदार्थोपरनी ममता छोडी शुद्धानंद चैतन्यस्वरूप आत्मानुं ध्यान कर के जेथी तुं कर्मोथी न बंधाय. भेदविज्ञान द्वारा आत्मामांथी विकारनो नाश : २५. अर्थ :--धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, कालद्रव्य–ओ चारे द्रव्यो कोइ पण प्रकारे मारे अहित करतां नथी; किन्तु मे चारे द्रव्यो, गति, स्थिति आदि कार्योमां मने सहकारी छे, तेथी मारा सहायक थइने ज रहे छे; परन्तु नोकर्म (त्रण शरीर, छ पर्याप्ति) अने कर्म जेनुं स्वरूप छे अर्बु तथा समीपे रहेनार अने बंधने करनार ओक पुद्गल द्रव्य ज मारुं वैरी छे, तेथी आ समये में तेना भेदविज्ञान तलवारथी खंडखंड ऊडावी दीधा छे. (खरो वैरी तो पोतानो अशुद्धभाव छे.) भावार्थ:-धर्म, अधर्म, आकाश, काल अने पुद्गल-मे पांच द्रव्य माराथी भिन्न छे, तेमांथी धर्म, अधर्म, आकाश अने काल -अ चार द्रव्य तो मारुं कोइ प्रकारे अहित करतां नथी, परंतु मने सहाय करे छे. अर्थात् धर्म द्रव्य तो मारा गमनमा सहकारी छे, अधर्म द्रव्य स्थिति करवामां सहकारी छे, आकाशद्रव्य अवकाशदान देवामां पण मने सहकारी छे, अने कालद्रव्यथी परिवर्तन थाय छे
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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