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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक ] [१२५ शुद्ध आत्मामां ज निवास करवो जोइओ अने तेनुं ज ध्यान तथा मनन करवू जोइओ. २८. अर्थ :-हे जिनेन्द्र ! आपना चरणकमळनी कृपाथी पूर्वोक्त वातोने सम्यकप्रकारे मनमां विचारी जे. समये आ जीव शुद्धि माटे अध्यात्मरूप त्राजवामां पग मूके छे ते ज समये, तेने दोषित बनाववाने भयंकर वैरी सामा पल्लामा हाजर छे. हे भगवन! तेवा प्रसंगे आप ज मध्यस्थ साक्षी छो. भावार्थ :-कांटाने बे छाबडा होय छे. तेमां अक अध्यात्मरूप छाबडामां जीव शुद्धअर्थे चडे छे, ते समये बीजा छाबडामां कर्मरूप वैरी ते प्राणीने दोषी बनाववा सामे हाजर ज छे, आवा प्रसंगे हे भगवन् ! आप आ बन्ने वच्चे साक्षी छो; तेथी आपे नीतिपूर्वक न्याय करवो पडशे. हवे 'विकल्पस्वरूप ध्यान तो संसारस्वरूप छे अने निर्विकल्प ध्यान मोक्षस्वरूप छे अम आचार्य दवि छ : २६. अर्थ:-द्वैत (सविकल्पक ध्यान) तो वास्तविक रीते संसारस्वरूप छे अने अद्वैत (निर्विकल्पक ध्यान) मोक्षस्वरूप छे. संसार तथा मोक्षमा प्राप्त थती अंत (उत्कृष्ट) दशानुं आ संक्षेपथी कथन छे. जे मनुष्य पूर्वोक्त बेमांथी प्रथम द्वैतपदथी धीरे धीरे पाछो हठी अद्वैतपदनुं आलंबन स्वीकारे छे ते पुरुष निश्चयनयथी नामरहित थइ जाय छे अने ते पुरुष व्यवहारनयथी ब्रह्मा, विधाता आदि नामोथी संबोधाय छे. भावार्थ:-जे पुरुष सविकल्पक ध्यान करे छे ते तो संसारमा ज भटकया करे छे, किन्तु जे पुरुष निर्विकल्प ध्यान आचरे छे ते १ विकल्परूप = रागद्वेष युक्त, विकार युक्त, २ निर्विकारी आत्मानु
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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