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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुछ लोग संकल्प करते हैं, किन्तु कल्पना से विघ्नों की संभावनाओं का विचार करके कार्य से दूर रहते हैं : सुसंकल्पान् करोमि विचारयामि परित्यजामि पुनः । भवन्नैतादृशं किञ्चित्क्वचिन्न च तादृशं किञ्चित् ॥ एक स्थान पर किसी महात्मा का प्रवचन चल रहा था । उसमें इस बात की प्रेरणा दी जा रही थी कि सबको श्रम की रोटी खानी चाहिये । प्रवचन समाप्त होने के बाद वहाँ के राजा ने महात्मा से पूछा कि श्रम की रोटी कैसी होती है - मैं उसे देखना चाहता हूँ । महात्माजी ने कहा कि आपके इसी नगर के अमुक मुहल्ले में चरखा कातने वाली एक बुढिया रहती है । उससे आप श्रम की रोटी माँगिये । वह आपको दिखा देगी । राजा बुढिया के पास पहुँचा । उससे कहा : "माताजी ! मैं श्रम की रोटी देखना चाहता हूँ । आपके पास हो तो एक रोटी मुझे दिखाइये ।" बुढिया : "बेटा ! मेरे पास आज कुल है; किन्तु उसमें भी आधी ही श्रम की है, राजा : "सो कैसे ? ज़रा विस्तार से समझाने का कष्ट करें ।" एक ही रोटी आघी नहीं ।" For Private And Personal Use Only यह संस्कृत पद्यानुवाद जिस उर्दू शेर का है, वह इस प्रकार है : इरादे बाँधता हूँ, सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ । कहीं ऐसा न हो जाये, कहीं वैसा न हो जाये ॥ प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादकने ही यह पद्यानुवाद किया है ।
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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