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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुढिया : "एक दिन मैं चरखा कात रही थी कि सूरज डूब गया। अंधेरा हो गया। थोड़ी ही देर बाद एक जुलस मेरे घरके सामने से होकर निकला। उसमें अनेक मशालें जल रही थीं। जुलूस धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। मैं उसके प्रकाश में चरखा कातती रही। मुझे उतनी देर तक दीपक नहीं जलाना पड़ा। तेलकी बचत हुई। उस अवधि में काते गये सूत को बेचने पर प्राप्त धन से यह रोटी बनी है; इसलिए प्राधी मेरे श्रम की है और आधी जुलूस की!" श्रम का महत्त्व इसी प्रकार एक साधुने भक्त धीराजी को समझाया था। धीराजी धन पाना चाहते थे। वे जुलाहे का काम करते थे; परन्तु किसी तरह वे जल्दी धनवान् बन जाना चाहते थे। कई लोगों से उन्हों ने कहा । किसीने उनके लिए मन्त्रसाधना की, किसीने जप किया, किसीने यज्ञ किया और किसीने तावीज़ बनाकर गले में और भुजा में बाँध दिये। सबने अपनी अपनी फीस धीराजी से वसूल कर ली; किन्तु धीराजी को धनप्राप्ति नहीं हो सकी। साथ ही इन अनुष्ठान करने वाले ठगों के चक्कर में उन्हें अपने धंधे के लिए पूरा समय नहीं मिलने के कारण कमाई भी कम हुई। साधुने उसके द्वारा किये गये पिछले सारे उपायों का विवरण उसके मुह से सुनकर जान लिया कि किस प्रकार धूर्तों ने विविध व्यर्थ उपाय बताकर उनसे अपना उल्लू सीधा किया है। फिर साधु ने बताया : "धीराजी ! तुम्हारा जो औजार है, वह वस्त्र बुनते समय जितनी बार आये और जाये, उतनी बार तुम अपने इष्टदेव का मन-ही-मन नाम लेना। ऐसा For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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