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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ अवएसा दिज्जन्ति हत्थे नच्चाविऊण अन्नेसिस । जं अप्परगा न कीरइ किमेस विक्काणुप्रो धम्मो ? [हाथ नचा-नचाकर दूसरों को उपदेश किये जाते हैं; किन्तु स्वयं उन उपदेशों का पालन नहीं किया जाता ! क्या यह धर्मोपदेश केवल बेचने की वस्तु है ? | क्रय-विक्रय का आधार केवल धन ही नहीं होता, प्रतिष्ठा भी होती है अर्थात् आपने लोगों को उपदेश दिया और लोगों ने आपको प्रतिष्ठा दी-आपकी प्रशंसा कर दी-आप प्रसन्न हो गये। यह उपदेश का व्यापार है । किसी इंग्लिश कविता की ये दो पंक्तियाँ देखिये : A man of words and not of deeds Is like a garden full of weeds ! [जो अपने कथन के अनुसार कार्य नहीं करता, वह मनुष्य घासफूस से भरे हुए बगीचे के समान है] कार्य के आधार पर मनुष्य को तीन थेणियों में विभाजित किया गया है : प्रारभ्यतेते न खलु विघ्नभयेन नीचैः प्रारभ्य विनविहिता विरमन्ति मध्याः । विघ्नः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति ।। - मुद्राराक्षसम् [विघ्नों के डरसे जो कार्य प्रारंभ नहीं करते, वे नीच हैं। प्रारंभ करने के बाद विघ्नों से घबराकर जो कार्य अधूरा छोड़ देते हैं, वे मध्यम श्रेणिके पुरुष है; किन्तु उत्तम जन वे हैं, जो बार-बार विघ्नों से आहत होकर भी प्रारंभ किये गये कार्य को पूरा करके ही छोड़ते हैं, बीच में नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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