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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कुछ लोग वाणी के शूर होते हैं, वे आजके राजनेताओंकी तरह आश्वासन देते हैं-बहुत कुछ बोलते हैं; परन्तु करते कुछ नहीं । उनके मन में कुछ, वचनमें कुछ और कार्य में कुछ और ही नज़र आता है। महात्माओं और दुरात्माओंका यही भेद है : मनस्येकं वचस्येकम् कर्मण्येकं महात्मनाम् । मनस्यन्यद्वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यदुरात्मनाम् ॥ [महात्मा वे हैं; जिनके मन, वचन और कार्य एक-से होते हैं ओर दुरात्मा होते हैं वे, जिनके मन-वचन-कार्यों में भिन्नता होती है]] कबीर साहब ने ऐसे दुष्टों को फटकारा है; जो बोलते हैं, वैसा करते नहीं : कहते सो करते नहीं, मुह के बड़े लबार । काला मुंह हो जायगा, साई के दरबार ॥ प्रभु महावीर ने भी उन लोगों की प्रकृति का उल्लेख इन शब्दों में किया है : भणन्ता अकरिता य बन्धमोवखप्परिण णो । वायाविरियमेत्रणम् समासासन्ति अप्पयम् ॥ [बन्ध और मोक्ष की विस्तार से चर्चा करने वाले कहते हैं, किन्तु वैसा करते नहीं है। वाणी के बल से ही अपने आपको आश्वस्त करते हैं-समझा लेते हैं] । दूसरों को उपदेश देकर समझते हैं कि वे ज्ञानी हो गये हैं; परन्तु वे भ्रम में हैं। जो आचरण करते हैं, वे ही सच्चे ज्ञानी हैं। आचरण में उपदेश को जो नहीं उतार पाते, वे तो व्यापारी हैं : For Private And Personal Use Only
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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