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________________ (४) सुनन्दा एवं रूपसेन (9) पृथ्वीभूषण नामक नगर था जहाँ कनकध्वज राजा राज्य करता था । उसके यश में वृद्धि करने वाली और अपने नाम को सार्थक करने वाली उसकी यशोमती नामक रानी थी और गुणचन्द्र एवं कीर्तिचन्द्र नामक दो राजकुमार थे तथा गुणों की खान सुनन्दा नामक एक राजकुमारी थी । सुनन्दा केवल बारह वर्ष की थी। वह न तो पूर्णरूपेण समझदार थी और न ही सर्वथा नादान । एक दिन वह राजमहल के झरोखे में से नगर की शोभा निहार रही थी । उस समय दूर-दूर के मन्दिरों में होने वाली आरतियों की ध्वनि तथा वन में से घर लौटती हुई गायों के गले में बँधी घंटियों की ध्वनि का सुमधुर संगीत चारों ओर व्याप्त था । गगन में तनिक तनिक अन्तर पर तारों के दीप प्रज्वलित थे । प्रकृति सौम्य एवं आह्लादक थी। उस समय सुनन्दा की दृष्टि एक घर में पड़ी और वह तुरन्त स्थिर हो गई। 'नाथ! मेरा कोई अपराध नहीं है, व्यर्थ आप मुझे दण्ड न दें। मैं कुलीन एवं सुसंस्कारी नारी हूँ। मैंने कोई अधम कार्य नहीं किया परन्तु डण्डे से पीटने वाला युवक तनिक भी ध्यान नहीं दे रहा था। उसे उसकी अनुनय-विनय सुनने का भी अवकाश नहीं था । वह युवक उस स्त्री पर लात घूँसा, डण्डे से प्रहार किये जा रहा था । वह स्त्री उसके चरणों में गिर कर कह रही थी, 'मेरी भूल नहीं है, आप जाँच करो, मैं निर्दोष हूँ ।' सुनन्दा अपनी सखियों को बुला लाई और स्त्री के दोषों की कल्पना कर के पीटते हुए युवक को बता कर कहने लगी, 'स्त्री कितनी पराधीन है ? संसार में क्या सुख है / दिन भर परिश्रम करके भी सास, ससुर एवं पति से दब कर रहना । स्त्री घर का दीपक है, घर की लक्ष्मी है, सौभाग्य का स्थान है; उसका पुरुष को कदाचित् ही ध्यान होता है । वहन ! मेरा विचार तो शिकार, चोरी, मदिरा पान आदि बड़े बड़े पाप करने वाले पुरुषों के अधीन वन कर जीवन नष्ट करने का नहीं है। मैं विवाह नहीं करूँगी । तु माता को कहना ताकि वह भूल से भी कहीं मेरा विवाह न कर डाले ।' सखी बोली, 'बहन ! अभी तू छोटी है । पत्नी के लिए पति क्या है, यह अभी तू नहीं समझेगी । स्त्री का सौभाग्य, प्राण और सर्वस्व उसका स्वामी (पति) है, उसे तू आज कैसे समझेगी?' 'मुझे कुछ नहीं समझना । तू मेरी माता को कह देना कि सुनन्दा विवाह नहीं करेगी, अतः वह किसी की मांग स्वीकार न करे ।' सुनन्दा ने पुरुषों के प्रति तिरस्कार एवं
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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