SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ घृणा प्रदर्शित करते हुए दृढ़ता से कहा। सखी ने राजमाता को बता दिया कि, 'सुनन्दा का विचार विवाह करने का नहीं है, परन्तु आप तनिक भी व्याकुल न हों | वह अभी छोटी है, अतः ऐसा कहती है । वयस्क होने पर सब ठीक होगा। राजमाता मुस्करा दी और 'अच्छा' कह कर वात समाप्त कर दी। (२) समय व्यतीत होता गया । सुनन्दा पन्द्रह-सोलह वर्ष की हो गई। देह में स्फूर्ति, चंचलता एवं रूपातिरेक के साथ उसके अंग-प्रत्यंगों में परिवर्तन भी दृष्टिगोचर होने लगा। वसन्त ऋतु का समय था । सुनन्दा राजप्रासाद के झरोखे में खड़ी थी। वहीं से उसकी दृष्टि सामने स्थित एक सुन्दर भवन पर पड़ी । भवन के गवाक्षों (खिड़कियों) को पुष्प मालाओं से सजाया गया था । सुगन्धित धूप से भवन महक रहा था और भवन के अन्दर एक सुन्दर पलंग पर बैठे हुए दम्पति दोगुन्दक देव तुल्य आनन्द में मान थे । उनकी पाँचों इन्द्रियों को आनन्दित करने वाली सारी साधन-सामग्री उस भवन में उपलब्ध थी। दास-दासी सेवा में उपस्थित थे । संगीत की मधुर स्वर-लहरी उनके कान एवं हृदय को आनन्दमय बना रही थी। खिलखिलाहट एवं हास्य से उनका आनन्द प्रकट हो रहा था । सुनन्दा के अन्तर में अवर्णनीय झन झनाहट उत्पन्न हुई। जड़ी गई पुतली के समान वह एकदम स्थिर हो गई और एकाग्रता से निहारने लगी। उसका रोम-रोम खड़ा हो गया और उसके मन में आभास होने लगा कि, 'यदि ऐसा सुख प्राप्त हो तो कितना अच्छा हो?' 'क्यों वहन! क्या ऐसा सुख तुझे प्रिय है?' यह कह कर सखीने उसे पुकारा तब वह चौंक गई और सखी को समक्ष देखकर वह बोली ‘मेरा ऐसा भाग्य कहाँ कि मुझे ऐसा सुख प्राप्त हो' 'ऐसा मत कह; तू राजकुमारी है, तुझे इससे भी उत्तम वैभव और सुख प्राप्त होगा।' 'यह किसने जाना है?' सुनन्दा निश्वास छोड़ते हुए बोली। सखी ने कहा, 'क्या मैं राजमाता को वात करूँ कि सुनन्दा विवाह करने की इच्छुक 'नहीं, अभी नहीं, क्योंकि आज तक विवाह नहीं करने का आग्रह था, अतः उनके मन में अनेक तर्क-वितर्क उठेंगे, युक्ति से सव वतायेंगे।" 'काम-विकार तो अग्नि है। अग्नि में ईंधन पड़ते ही वह भड़क उठती है। अतः यह देख कर जी न जला, नीचे चल ।' कह कर सुनन्दा का हाथ खींच कर सखी उसे
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy