SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाप ऋद्धि अर्थात् ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती पूछा, 'नाथ! आपके हँसने का कारण क्या है ?" राजा बोला, 'मेरे हँसने का कारण बताने से मेरी मृत्यु हो सकती है । ' रानी बोली, 'भले ही हो, परन्तु मुझे अपने हँसने का कारण तो बताना ही पडेगा । यदि मृत्यु हो जायेगी तो हम साथ-साथ मरेंगे और आगामी भव में साथ-साथ जन्म धारण करेंगे ।' २५ राजा ने कहा, 'मूर्खता मत कर, कहने में कोई सार नहीं है । ' रानी ने हठ पकड़ ली और वह मरने के लिये तत्पर हो गई। रानी के वशीभूत हुए ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने नगर के बाहर चिता रचवाई और वे रानी के साथ वहाँ आये । नगर निवासी एवं मंत्री गण अश्रुपूर्ण नेत्रों से यह दृश्य देख रहे थे। इस अन्तराल में चक्रवर्ती की कुलदेवी ने गैंडे-गैंडी का रूप बनाया और गैंडी ने गैंडे को कहा, 'इस सामने पड़े जौ के ढेर में से एक पूला मुझे ला दो ।' गैंडा बोला, 'चक्रवर्ती के अश्व के लिए यह पूला है। उसे लाने जाने में मेरी मृत्यु हो सकती है।' डी ने कहा, 'यदि वह आप नहीं लाओगे तो मैं मर जाऊँगी।' गैंडा बोला, 'यदि तू कल मरती हो तो आज मर जा । यदि तु मर जायेगी तो मैं दूसरी ले आऊँगा । मैं कोई ब्रह्मदत्त जैसा मूर्ख नहीं हूँ कि उसके चौसठ हजार रानियां होते हुए भी एक रानी की हठ के लिए वह मरने के लिए तत्पर हुआ है ।' गैंडा-डी की भाषा समझ कर चक्रवर्ती सचेत हो गया और वह अपने महल में लौट आया । प्रजा हर्षित होकर कहने लगी कि स्त्री के हठ के वशीभूत होने वाले पुरुष का नाश होता है । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने सात सौ वर्ष ऐश्वर्य पूर्ण व्यतीत किये। एक दिन उसके एक वृद्ध ब्राह्मण मित्र ने परिवार सहित भोजन की याचना की। राजा ने प्रारम्भ में तो मना किया परन्तु अंत में अत्यन्त आग्रह के कारण उसकी याचना स्वीकार की । चक्रवर्ती के आहार ने उस ब्राह्मण में उन्माद जाग्रत कर दिया। रात्रि में वह अपना विवेक खो बैठा और पत्नी, पुत्रवधू और पुत्री का भी विचार किये बिना सवके प्रति भोगासक्त हुआ । चक्रवर्ती के अन्न का प्रभाव समाप्त होने पर उसका विवेक जाग्रत हुआ और अपने अविवेक के लिए वह अत्यन्त लज्जित हुआ। तत्पश्चात् अपनी भूल का विचार • नहीं करने वाले ब्राह्मण के मन में चक्रवर्ती के प्रति वैर उत्पन्न हुआ और लक्ष्य साधने में दक्ष एक ग्वाले को वश में करके उसने दो कंकड़ों से ब्रह्मदत्त की आँखें फुड़वा दी। महान् शूरवीर एवं सहस्त्रों मनुष्यों को थका देने वाले ब्रह्मदत्त के नेत्र एक ग्वाले
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy