SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ तू तप- मार्ग की ओर अग्रसर हो ।' मुनिवर ने चक्रवर्ती को धर्म मार्ग की ओर अग्रसर करने का प्रयास किया परन्तु सातवी नरक में जाने वाले ब्रह्मदत्त में भाई के प्रति प्रेम के अतिरिक्त अन्य धर्म-प्रेम जाग्रत नहीं हो सका । सचित्र जैन कथासागर भाग San (४) एक बार ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती पर नागदेव प्रसन्न हुए और कहने लगे, 'तू जो माँगेगा, वह मैं तुझे दूँगा ।' चक्रवर्ती ने कहा, 'मुझे कुछ नहीं चाहिये, मुझे तो केवल इतना चाहिये कि मेरे राज्य में व्यभिचार, चोरी तथा अकाल मृत्यु का नाश हो जाय ।' नागदेव ने कहा, 'यह तो परोपकारार्थ माँग है। तू मुझसे कोई व्यक्तिगत माँग कर ।' नागदेव के अत्यन्त आग्रह करने पर ब्रह्मदत्त ने पशु-पक्षियों की भाषा सुनने और समझ सकने की माँग की । नागदेव ने यह वरदान किसी को नहीं कहने की शर्त पर उसे दे दिया और बताया कि यदि तू किसी को यह बात बता देगा तो तेरी मृत्यु हो जायेगी । तत्पश्चात् नागदेव अदृश्य हो गये । एक वार ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती अपनी रानी के साथ आनन्द मान थे, उस समय उनकी दृष्टि गृह-गोधा के युगल पर पडी । मादा गृहगोधा नरगृहगोधा को कह रही थी कि राजा का अंग - विलेपन में से थोड़ा अंग- विलेपन मुझे ला दो । नर गृहगोधा ने कहा, 'यह कोई सामान्य वात नहीं है। उसे लाने में प्राण जाने का भय है ।' मादा गृहगोधा ने कहा, 'कुछ भी हो, परन्तु मुझे उसकी आवश्यकता है ।' यह सुन कर राजा को हँसी आ गई। रानी ने राजा को अचानक हँसने का कारण CAT HARRO 7804041 SONGTEKSTUROMPTAurkikuu.detulerunt HTTURMIAJIT DICIONS YAVYWO - १ नाथ! आपके हंसने का कारण क्या है? राजा बोला, मेरे हँसने का कारण बताने से मेरी मृत्यु हो सकती है! * हरि सोमपुरा
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy