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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी प्रेम, मैत्री और मुक्ति अनंत उपकारी परम कृपालु आचार्य भगवन्त श्री हरिभद्र सूरि जी महाराज ने जगत के जीव मात्र के कल्याण के लिए धर्म साधन के द्वारा जीवन का एक सुन्दर परिचय दिया, लक्ष्यों को प्राप्त करने का साधन उन्होंने इस धर्म बिन्दु ग्रंथ के द्वारा दिया है, जीवन की साधना का एक लक्ष्य तो निचित होना चाहिए, मुझे कहां जाना है? इस बात का पहले से ही पता होना चाहिए. फिर उसकी पूरी तैयारी अपने जीवन में होनी चाहिए. आग लग जाए फिर हम कआं खोदने के लिए आएं बहत बडी मर्खता होगी जीवन के अन्तिम समय, डाक्टर ने जवाब दे दिया हो, ऐसी परिस्थिति में यदि हम धर्म करने की तैयारी करें, रक्षण तो मिलेगा, परन्तु जैसा चाहिए, वैसा सन्तोष, आत्म तृप्ति नहीं मिलेगी. पहले से उसकी तैयारी होनी चाहिए कि मुझे कहां जाना है. "इदमपि गमिष्यति" जो मैं आखों से देख रहा हूँ, ये सारी वस्तु मुझे छोड़ करके एक दिन जाना है. यह मन्त्र यदि याद हो जाए कि मुझे जाना है, पाप कमजोर हो जाएगा. एक बार यह निश्चित कर लीजिए कि जितना मैं प्रयत्न कर रहा हूँ यह मेरा सारा ही प्रयत्न निष्फल होने वाला है, "इदमपि गमिष्यति”. मैं जो देख रहा हूँ, जिन पर वस्तुओं का मैंने संग्रह किया है. आध्यात्मिक दृष्टि के अन्दर, उसकी परिभाषाओं में, स्पष्ट निर्देश दिया गया कि कोई चीज आत्मा से सम्बन्ध रखने वाली नहीं. वर्तमान में जो भी मैं प्रयत्न कर रहा हूँ , यह सब छोड़कर के मुझे जाना है, इतना आप याद कर लीजिए, “मुझे छोड़ करके जाना है" ये मेरे साथ जाने वाली चीज नहीं है __ "विभवो नैव शाश्वतः" एक भी वस्तु ऐसी नहीं है, जो मेरे साथ जा सके, मैंने अन्तर हृदय से प्रेम पूर्वक जो भी शुभ कार्य किये हैं, वही मेरे साथ जाने वाले हैं. उस कार्य के द्वारा पुण्य-कर्म का मैंने जो अनुबन्ध किया है, वही मेरे साथ नर-भाव में आने वाले हैं. बाकी संसार से मेरा कोई संबंध नहीं, सूत्रकार ने स्पष्ट कर दिया धर्म करने से पहले, धार्मिक कार्य अनुष्ठान से पहले, अपने परिणाम और आशय को आप शुद्ध बना लें. उसी भावना से आप धर्म क्रिया करें तो फलीभूत बनेगा, ताकि उस धर्म क्रिया के अन्दर भौतिक कामना न आ जाए. उस धर्म साधना के अन्दर जगत की याचना न आ जाए. साधना जो सम्राट् बनने के लिए है, उस साधना के माध्यम से मानसिक दरिद्रता मेरे अन्दर न आ जाए. एक बार आप निश्चित कर लेंगे मुझे कुछ नहीं चाहिए, सब कुछ ह 353 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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