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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra An www.kobatirth.org गुरुवाणी के निकालना है, इस पर बुद्धि से काम लिया. ऐसी बुद्धि वहां दौडाइए, तब जाके आत्मा शत्रु कर्म से जुदा होंगे. बाहर तो संसार के लिए बहुत बुद्धि लडाई, बहुत अच्छे-अच्छे वकील किए, परन्तु वहां हमारे जैसे किसी वकील को रखिए कर्म से लड़ने वाला साधु चाहिए. ऐसा उपाय बतलाने वाला चाहिए जिससे कि मेरा रक्षण हो. यह विषय कल लेंगे, आज समय आपका काफी हो गया है. आत्मा के शत्रुओं पर विचार चल रहा है. विशुद्ध आध्यात्मिक चिन्तन है. किस प्रकार से हम अपने शत्रुओं को पराजित कर पाएं, ये षड्रिपु आत्मा के लिए कितने भयानक हैं? इनमें कैसी एकता है. हमारी सद् भवानाओं में धार्मिक दृष्टि से एकता नहीं मिलती. कल इस पर विचार करेंगे आज इतना ही रहने दें. "सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम् ” 噩 मैं सभी का हूँ, सभी मेरे हैं. प्राणी मात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना है. मैं किसी वर्ग, वर्ण, समाज या जाति के लिए नहीं, अपितु सब के लिए हूँ. मैं ईसाइयों का पादरी, मुसलमानों का फकीर, हिन्दुओं का सन्यासी और जैनों का आचार्य हूँ. जो जिस रूप में चाहें, मुझे देख सकते हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 352 For Private And Personal Use Only U
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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