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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - -गुरुवाणी कितना भयंकर दुरुपयोग हमने अपने पावों का किया है. न जाने दिन में गर्मी में कहां पांव दौड़े. पैसे के लिए उस भयंकर गर्मी में भी हम दौड़ते रहे. परन्तु परमात्मा के दर्शन के लिए या साधु सन्तों के दर्शन के लिए कभी अपने पुण्य पुरुषों की सेवा के लिए हमने आज तक पांवों का प्रयोग नहीं किया तो फिर ये किस काम आए? ___हमने अपनी इन्द्रियों का आज तक उपयोग केवल पाप के आगमन के लिए किया है. इन्हें पाप को प्रवेश द्वार बना कर रखा है. पाप के उपार्जन में सारी इन्द्रियां माध्यम बन गईं जबकि इसका उपयोग धर्म का साधन बनने के लिए थे. किन्तु यह उपयोग धर्म साधना के क्षेत्र में आज तक नहीं किया गया. मोक्ष प्राप्ति का जो साधन था. वह साधन संसार उपार्जन में निमित्त बना. यह बहुत विचारणीय प्रश्न है. पाँव को यदि आपने देख लिया होता, समझ लेते पांव ही की भाषा से उसके भावों को यदि यह जान लेते, बहुत कुछ पा जाते. पांव की भी एक भाषा है. ___ आज तक इस भाषा को हम समझ नहीं पाए. आप ने कभी पांव की नम्रता देखी? इस पांव की साधुता को देखा? कभी इसने असहयोग भाव से जीवन में अशान्ति उत्पन्न की? कभी हड़ताल की? आपकी आज्ञा का यथावत पालन किया. यदि पांव जितनी अकल भी हमारे अंदर आ जाए, तो ये सारी यात्रा मोक्ष की ओर, परमेश्वर की यात्रा बन जाए. पांव जितनी भी बुद्धिमानी हमारे पास में नही. आप देखना, जब हम चलते हैं, एक पांव आगे जाता है दसरा पीछे रहता है. वह कहता है, भई! तम आगे चलो. मैं तुम्हारे पीछे हूँ, तुम्हारे सहयोग में उपस्थित हूँ तुम्हारे सहयोग में तैयार हूं. तुम आगे बढ़ो, जैसे ही वह पांव आगे बढ़ता है, रुक जाता है. मानो कहता है तुम्हें लिए बिना मैं आगे नहीं बदूंगा. तुम आगे आओ. इन दोनों पाँवों की मैत्री क्या कभी आपने देखी? ___कैसा प्रेम पूर्वक आमन्त्रण है, एक इंच भी पिछला पांव आगे नहीं जाता. कभी साथ चलने का प्रयास नहीं करता. कभी इनमें यह दुर्भावना नही आती कि यह ही आगे क्यों बढ़ता है या मैं ही आगे आगे चलूंगा. हुआ है कभी ऐसा? एक पांव आगे जाएगा दूसरा पांव पीछे रहेगा. मैं तुम्हारे लिए सहयोग में, मैं तैयार हूं तुम आगे बढ़ो, जो आगे बढ़ेगा वह तुरंत रुक जाएगा. तुम को छोड़कर मैं आगे नही बदूंगा. तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हारी सेवा में तैयार हूँ, जैसे पांव आगे आएगा पिछला रुक जाएगा. अगला रुका तो वह तुरंत कहेगा तेज आगे आओं. दोनों का प्रेम देखो, आपको यहाँ से घर तक पहुंचा देते हैं. घर दुकान मकान तक ले जाते हैं. इनमें अगर वैर हो जाए. कटुता आ जाए तो क्या आप यहां से जा सकेंगे? पांव जितनी भी नम्रता आ जाए, सहयोग की भावना आ जाए तो भी उसका कल्याण हो जाए. हमने न तो अपनी इन्द्रियों से कुछ सीखा. न अपनी शारीरिक रचनाओं में से कोई अध्यात्मिक चेतना या जागति प्राप्त की. मात्र जगत की चिन्ता में सारा जीवन बरबाद हो गया. 248 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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