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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org : गुरुवाणी सियार ने साधु की आज्ञा का पालन किया और कहा- मैं भले मर जाऊं पर इसे न खाऊँगा. आपकी आज्ञा शिरोधार्य है. ऐसे पापी आदमी की लाश का भक्षण मैं कभी नहीं करूंगा. यह कवि कल्पना है, बड़ी सुन्दर कल्पना है. यह सारी कल्पना हमारे उपकार के लिए है. हमें जागृत करने के लिए है.. उस महान आचार्य भगवन्त ने भी यह निर्देश इसीलिए दिया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " सर्वत्र निन्दा संत्यागो" जीभ का कितना घोर दुरुपयोग किया. आपने कभी सोचा. ढेर सारी मिठाई आप खा गए. जन्म से लेकर आज तक लड्डू पेड़ा कितना ही खा गए. क्या जीभ के अन्दर मिठास आई ? आज तक नहीं आई खाते-खाते आनी चाहिए थी. आपकी वाणी को मीठा बन जाना चाहिए था. क्षमापना करते समय संवत्सरी के पारणे में मिठाई से क्षमापना करना कि मैंने तुम्हारा बहुत ही दुरुपयोग किया. आज के बाद कभी दुरूपयोग नही करूंगा. जन्म से आज तक तुम्हारा स्वाद लिया, तुम्हारा परिचय किया. न जाने कितना-कितना तुम्हारा आहार किया. परंतु उस माधुर्य का स्वाद मेरे शब्दों में आज तक नही आया. कड़वापन ही रहा. मिठाई खा कर के भी मिठास नही आई फिर हम रोज खाते हैं. उससे भी क्षमापना करिए. तुम्हारे परिचय से मुझमें परिवर्तन क्यों नहीं आया ? संकल्प करिये कि ऐसा माधुर्य मेरे शब्दों मे आना चाहिए. स्तोकम् मधुरम्, और निपुणम् शब्द के जो गुण चल रहे हैं. जिसका वर्णन चल रहा है कि कैसे बोलना चाहिए. कैसी मधुरता आनी चाहिए. निपुणम् जब आप बोलते हैं तो उस कार्य के अंदर उस वाणी के व्यापार के अंदर, आपकी बौद्धिक कुशलता का परिचय मिलना चाहिए, चालबाजी का नहीं, चापलूसी का नहीं. बुद्धि पूर्वक, आत्मा के अनुकूल कुछ बौद्धिक कुशलता का लोगों को परिचय मिलना चाहिए. उसका उपयोग मैं आत्म हित में करूँ. ताकि कार्य के क्लेश से, क्लेश के आगमन से, यह आत्मा मुक्त बने. बुद्धि का उपयोग इस प्रकार से किया जाए. अन्तर जगत में मेरी आत्मा के गुण लूटे न जाएं. हमने कभी इस प्रकार विचार नहीं किया, जो होशियार व्यक्ति को करना चाहिए. बाहर लुटने से बचने की हम बहुत कोशिश करते हैं. परन्तु अन्दर लुटने से बचने के लिए, हमने आज तक किसी उपाय पर विचार नहीं किया. सेठ मफतलाल फस्ट क्लास में बंबई जा रहे थे. रास्ते में गुंडा मिल गया, हाथ में बड़ी कीमती अंगूठी थी. बड़ी मूल्यवान छड़ी थी. किसी गुंडे ने देखा यह मौका अच्छा है. बैठ गया वह भी उस फस्ट क्लास के डिब्बे में गाड़ी चल रही थी. मफतलाल विचार में पड़ गया. यह आदमी बहुत गलत दिखाई देता है. चेहरे की भाषा से ही वह उसे समझ गया. इतना कुशल था. 249 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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