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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी वे आपकी बात सुनें नहीं, घरवाली आपसे आंख मिलाए नहीं, ये सारा वातावरण यदि तनावपूर्ण हो, आप बरदाश्त करते हैं कि नहीं? मैंने उनसे कहा - घर से राजीनामा दे दीजिए, मेरे यहां आइये द्वार खुला हआ है. कोई व्यक्ति अपने घर से राजीनामा, त्याग पत्र देने को तैयार नहीं, मंदिर से दे देगा, ट्रस्ट से दे देगा, बाहर से दे देगा, आवेश में आएगा. घर में रोज़ यह रामायण घटती है. परंतु कोई घर से त्याग पत्र दे कर के आने वाला नहीं मिला. वहां हम सब सहन कर लेते हैं. साधना में सहनशीलता का अभाव तो साधना कहां से परिपक्व बनेगी? वह साधना कहां जीवन में महक देगी? आनन्द दे ही नहीं सकती. संसार में सहन होता है. पुलिस स्टेशन में आमन्त्रण मिले, वहां अगर अपमानित किया जाय, कैसे सहन करते हैं. बोलते हैं जरा भी? मौन हो जाते है. इन्कम टैक्स ऑफिस में गए, सवाल किया जाता है. एक अक्षर बोलते हैं? कलैक्टर के ऑफिस में गए, किसी बड़े ऑफिसर के पास गए. यदि वह धमकाए, अपमानित करे, कोई वहां शिष्टाचार नहीं और कितनी क्षमता से सहन करते हैं. धन्यवाद. सारी समस्या यहीं पैदा होती है. जरा आत्म-दृष्टि से आप विचार करिए, हमारा व्यवहार कितना धर्म से शून्य बना है. जरा भी व्यक्ति विचार नहीं करेगा. आत्म-दृष्टि से, वह कभी नहीं सोचेगा कि मैं गलत कार्य कर रहा हूं. इसका परिणाम बड़ा गलत आएगा. धर्म से शून्य जीवन का यही परिणाम, वह कहीं प्रेम संपादन नहीं कर पाएगा. बिहार के अंदर एक गार्डन में से निकल रहा था. बच्चे फुटबाल खेल रहे थे. अचानक फुटबाल खेलते-खेलते वह ग्राउंड से निकल कर मेरे पांव के पास आया. बड़ी सुंदर मैंने कल्पना की. फुटबाल से पूछा - "भाई क्या बात है. तू जहां जाता है वहीं ठोकरें खाता है. इसका क्या कारण है? कोई तुझे हाथ में लेना पसंद नहीं करता? जहां जाएं वहीं ठोकर. तेरी ये दुर्दशा देखकर मुझे दया आ गई." ____ फुटबाल ने एकदम सत्य कह दिया. आप से तो छिपा कर के बात क्या करूं.. उसने कहा -- “महाराज मेरे अंदर पोल है. बिल्कुल शून्य हूं, यही कारण जहां जाऊं, वहीं ठोकर मिलती है." जिस आत्मा का जीवन फुटबाल की तरह धर्म शून्य होगा. एकदम पोल होगा, वह जगत् के अंदर कर्म की ठोकर ही खाएगा. सन्मान का पात्र नहीं बनेगा. कहीं उसे आदर नहीं मिलेगा. ___ हमारा जीवन इस प्रकार धर्म से शून्य नहीं होना चाहिए. शब्दों से व्यक्ति की पहचान होती है. तपेले में क्या है? वह चम्मच कह देता है. अन्तर हृदर में आपका चिन्तन कैसा है? यह जीभ कह देती है. यह चम्मच जैसी है. सुनने वाला उसके स्वाद में अनुभव कर लेता है. व्यक्ति कैसा है कटु या मधुर. 226 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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