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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी - एक बार बंबई में एक वकील ने मुझसे से पूछा. कि सच बात पर आवेश आ जाता है. तो महाराज ने कहा आवेश आएगा ही. कोई आदमी गलत करता है, हमसे सहन नहीं होता. ___ मैंने कहा - "आदमी को सुधारने का यह सही रास्ता नहीं. ऐसे आवेश में सिवाय नुकसान के कुछ भी नहीं." ___ मैंने उनसे कहा – “धर्म स्थान में आने वाले, मंदिर की सेवा करने वाले, परंतु हमारी यह आदत कि जरा कुछ भी इच्छा के विपरीत हुआ. तुरंत बोलेंगे." एक ऐसा व्यक्ति मुझे मिला – त्याग पत्र लेकर आया सुबह ही मेरे पास. मैंने कहा – “क्यों, क्या बात है?" "बस अब त्याग पत्र दे देना है." "क्यों?" "साथियों से हमारा मन मेल नहीं बैठता है, मैं बहुत सच्ची बात का आग्रह करता हूं. और कोई मानने को तैयार नहीं. मैं क्यों झुकू?" सारी गर्मी उसने निकाली. मैंने कहा गुस्सा आया है, इसको वोमिट करने दो. उसके बाद शान्ति से बात करो. ___ व्यक्ति को पहले आप शान्त हो जाने दीजिए. फिर उससे बात करें. गर्म तेल के अंदर आप ज़रा भी पानी डालेंगे, छींटा डालेंगे उसका परिणाम, पहले आपको जलाएगा. उसकी प्रतिक्रिया बड़ी गलत होगी. आवेश और उत्तेजना में यदि आपने उपदेश दिया, उसका परिणाम आपकी आत्मा में भी क्लेश होगा, उत्तेजना आ जाएगी. व्यक्ति को पहले शान्त होने दीजिए. आवेश में था. “मैं बरदाश्त नहीं करता, एक घड़ी भी इसमें रहना पसंद नहीं करता. मेरा राजीनामा. किसी को नहीं दूंगा. आपको ही देने आया हूं. बस आप उन्हें पहुंचा दीजिए.” बोलकर के चुप हो गया. ____ मैंने कहा - यहां तो सब अपने भाई हैं. सब मिलकर के धर्म का सुंदर कार्य संचालन करते हैं. होता है कई बार विचारों में तालमेल नहीं बैठता. जरा सोचिए. जरा समय जाने दीजिए. उनकी उत्तेजना खत्म हो जाए. अपनी सच्ची बात रखिए. आज नहीं तो कल ज़रूर मानेंगे. एडजस्ट होने का आप प्रयत्न कीजिए. मैंने कहा - ऐसे तो घर में भी प्रसंग आपके आते होंगे. यहां तो कभी महीने में एक बार मीटिंग होती है. परंतु घर के अंदर तो रोज़ चर्चाएं चलती होंगी. हर घर की एक अलग रामायण है. कहो, अगर दुर्गा देवी जैसी बहू आ जाए, रावण के अवतार जैसा कोई सुपुत्र आ जाए. यमराज के प्रतिनिधि बनकर कोई जमाई आ जाए. घर में रोज उपसर्ग चलता हो. ___ महावीर ने तो साड़े बारह वर्ष सहन किया, परंतु यहां हमारा जीवन तो ऐसा है जीवन पर्यन्त संघर्ष चलता है. और वहां रोज अपमानित होना पड़े. लड़के आपकी माने नहीं. ar 225 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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