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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3Dगुरुवाणी यहां इस वस्त पर विचार करिए कल मैंने कहा था, कैसे बोलना है क्या बोलना है, यह भाषा समिति है. समिति का मतलब है - उपयोग, जयणा, जयणा का मतलब है - पूर्ण आत्मा की जागृति. जरा भी ऐसा गलत कार्य न हो जाए जो मेरी आत्मा के लिए पीड़ा का कारण बने. किसी आत्मा को दुखी करना स्वयं की आत्मा को दुख देने जैसा है. उसी माध्यम से तो व्यक्ति दुख की प्राप्ति करता हैं बिना कर्म के जगत् में कभी कोई कार्य नहीं होता. कार्य के पीछे कारण छिपा होता है. जो कार्य घटित होता है, भले ही हम निमित्त बन कर के आएं. परंतु उसके पीछे कारण तो मानना ही पड़ेगा. बिना कर्म के कार्य बना कैसे? कर्म की प्राप्ति का सबसे सरल साधन, कर्म के आश्रव बात पर, और आगमन का श्रोत आपकी जीभ है. मैं कहा करता हूं सबसे पहले धर्म का जन्म ही यहां से होता है. धर्म की मृत्यु भी यहीं से होती है. कृष्ण ने भागवत् में शांति पर्व में स्पष्ट कहाः “सत्येन उत्पद्यते धर्मः" परमात्मा महावीर का भी यही शब्द है. ___सच्चं खलू भगवम" सत्य ही परमात्मा है, वही परम सत्य. सिद्ध अवस्था में आत्मा का शुद्ध स्वरूप, वही जगत् का परम सत्य है. सत्य को प्राप्त करने का सम्यक् प्रयास, सम्यक् पुरुषार्थ वही धर्म साधना है. आत्मा को प्राप्त करने का, परम सत्य को, सत्य के माध्यम से, प्राप्त करने का, वही परम मार्ग है. वही सम्यक् दर्शन है. सत्य को स्वीकार करना. सत्य को समझना ही सम्यक ज्ञान है. सत्य में प्रतिष्ठित जीवन ही सम्यक् चरित्र है. असत्य का प्रतिकार करना ही चारित्र का गुण है. सत्य को स्वीकार करना ही तो सम्यक् दर्शन है. अलग-अलग दृष्टिकोण से सत्य को समझना, वही सम्यक ज्ञान है. ज्ञान पर सम्यक अनुशासन, विवेक का अनुशासन. अंत में, उन्होंने कहा - धर्म का नाश कैसे होता है? मृत्यु कैसे होती है ? श्री कृष्ण ने बड़ा अपूर्व चिन्तन दियाः । "क्रोधात् लोभात् विनश्यति" क्रोध के द्वारा, परनिन्दा के द्वारा, पर चर्चाओं के द्वारा धर्म का नाश होता है. धर्म की मौत होती है. धर्मसत्य से जन्म लेता है और क्रोध से वह मृत्यु प्राप्त करता है. मैं कहूंगा सर्वप्रथम वाणी से अपना अनुशासन कायम करना है. यह वाणी का व्यापार पुण्य का लाभ देने I 227 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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