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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra a AL www.kobatirth.org गुरुवाणी: "तो इस बेकार की माथा फोडी से क्या मतलब?" मात्र हम परचर्चा करें. पर निन्दा करें. वह ऐसा, यह ऐसा, इससे आपकी आत्मा को क्या लेना देना ? आपकी आत्मा को क्या लाभ मिला? उससे कौन सा ऐसा पुण्य आपने उपार्जन किया? कौन से ऐसे पुण्य की आपको प्राप्ति हुई ? सिवाय क्लेश के और कुछ नहीं आपको मिलेगा. मानसिक क्लेश और संताप से पीड़ित आत्मा को कभी शान्ति और समाधि का अनुभव प्राप्त नहीं हो सकता. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मा ने अपनी देशना के अंदर अपने प्रवचन में यही मार्गदर्शन दिया कि जैसे भी हो वाणी का कभी दुरुपयोग नहीं करना चाहे कैसा भी प्रसंग आ जाए. मौन के द्वारा अपनी आत्मा की पवित्रता को कायम रखना. परमात्मा ज्ञान से सब जानते थे. सर्वज्ञ थे. जो आत्मा सर्वज्ञ होती है, कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर लेती है. सारे जगत् का चित्र उनके समक्ष स्पष्ट होता है. भूत, भावी और वर्तमान उनकी जानकारी से बाहर नहीं रहता. तीनों काल के समस्त वास्तविकताओं को जानने वाले होते हैं. आपने आश्चर्य से देखा कभी समवसरण में जब प्रभु देशना देते हैं. प्रवचन देते हैं. सभी आत्मा पवित्र नहीं होती. एक एक आत्मा के मनोगत भावों को जानने वाले उसकी सारी पाप क्रिया को जानने वाले, भगवन्त ने कभी अपनी देशना में यह कहा तू क्या बात करता है? तेरा जीवन में जानता हूं किसी आत्मा के जीवन का प्रकाशन किया. किसी के पाप का विस्फोट किया ? कैसा गांभीर्य था. "सागर वर गम्भीरा” हमारे यहां प्रतिक्रमण सूत्र में कहा जाता है, सागर के समान परमात्मा गंभीर होते हैं. जरा भी छलकते नहीं. विचार में जरा भी उत्तेजना नहीं. कार्य में कैसा समत्व विचार में कैसी धीरता. कैसी गंभीरता. जानते हुए भी नहीं, क्योंकि उनसे तो कोई पाप छिपा नहीं. परंतु प्रभु ने कुछ भी नहीं कहा, किसी से भी नहीं कहा. , तू क्या करता है? मैं सब जानता हूं. हमारी आदत बड़ी विचित्र है. बिना जानकारी के भी हम कह देंगे. किसी को नीचा उतारने के लिए तिरस्कृत करने के लिए, अपमानित करने के लिए नहीं आए हम बोल देंगे. भगवन्त ने कहा 7 यदि आपने कभी बोलने नहीं जैसा कुछ बोला तो नहीं सुनने जैसा आपको कल सुनना भी पड़ेगा नहीं करने जैसा कार्य यदि आपने किया, तो नहीं भोगने जैसी सजा भी आपको ही भोगनी पड़ेगी. 224 बोलते समय आप विचार करके बोलना नहीं तो फिर नहीं सुनने जैसा ही सुनना पडेगा. व्यक्ति की आदत है. For Private And Personal Use Only HOFER NE
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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