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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - www.kobatirth.org : गुरुवाणी उन्होंने कहा इसमें कोई बड़ी बात नहीं. यौगिक प्रक्रिया के द्वारा, योग शक्ति से. उन्होंने अपने गले के अंदर उस विष का शमन कर दिया. उनका जो कण्ठ था, वह नीलवर्ण वाला हो गया. इसलिए विशेषण लगाते हैं नीलकंठ ज़हर के कारण उनका कण्ठ नीला पड़ गया. यौगिक क्रिया के द्वारा उसे वहीं स्तंभित कर दिया, ताकि शरीर में उसकी कोई गलत प्रतिक्रिया न हो. सारे देवताओं ने बहुत बड़ी सभा की. और मिलकर के निर्णय किया कि हम तो देव हैं, जितने भी अवतारी पुरुष हुए सभी देव हैं. सभी ने अमृत का पान किया. एक मात्र शंकर ने ज़हर का पान किया. आज से ये देव नहीं, महादेव कहलाएंगे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह वैदिक कल्पना का बड़ा सुंदर रूपक है. और आध्यात्मिक दृष्टि से इसे समझना है. जो व्यक्ति कड़वा ज़हर पीएगा. किसी के शब्द का पान करेगा, तिरस्कार का पान करेगा, किसी के क्रोध का यदि पान कर जाए और सहज पूर्वक उसे स्वीकार कर ले, तो वह जहर अमृत बन जाएगा. आत्मा के लिए टॉनिक बन जाएगा. वह आपके जीवन की एक सुंदर कसौटी होगी. वही महावीर बनेगा. हमारे पास पचाने के लिए होजरी नहीं: पाचनशक्ति इतनी क्षीण है. गलत प्रतिक्रया हो जाएगी. और जगह हम मौन रहते हैं. भय से चुप रहते हैं, जानते हैं कि बोलूंगा तो गलत परिणाम आएगा. आवेश आ जाता है. तुरंत निन्दा का आश्रय ले लेते हैं. पराश्रित बन जाते हैं. कर्म के आश्रित बन जाते हैं. आत्मा के आवलंबन को छोड़ देते हैं. आत्मा के गुणों की उपेक्षा कर देते हैं और अपने अन्तर की चेतना की हत्या कर देते हैं. सारी साधना “छार पर लिपनो तेह जानो", गोबर का लेप लगाया हो घर के अंदर राख के ऊपर यदि आप गोबर का लेप करो, वो गोबर टिकेगा ? उसी तरह बिना समत्व के बिना इस प्रकार की मंगल भावना के, आप सारी धर्म क्रिया करें कोई उसका मूल्य नहीं रहेगा. गोबर उबड़ जाने वाला है. क्षणिक है. टिकने वाला नहीं, उसमें स्थायित्व नहीं. सारे गुण मूर्च्छित हो जाते सारे कषाय को जन्म देने वाली यह परनिन्दा है. पर चर्चा जिससे आत्मा का कोई संबंध नहीं. गांव के बाहर बैठने वाला व्यक्ति गांव की गाय को गिनता है. किसी व्यक्ति की आदत थी, गांव के बाहर बैठना. सारे गांव की गांयें चरकर जब वापिस लौटती, गोधूलि के समय तो वही गिना करता था. बेकार बैठा था. इसके घर इतनी गाय. पूरे गांव की सब गाय उसकी अंगुली पर - किसी साथी ने कहा "तुम बेकार समय नष्ट करते हो. इस परचर्चा से दूसरों के विचार से तुझे क्या मिलेगा ? हजारों गायों को तू हर रोज़ गिनता है. हरेक घर की गायों की संख्या तुझे मालूम है. पर कभी एक छटांक एक पांव दूध मिला है ?" "यार वह तो नहीं मिला." 223 For Private And Personal Use Only do
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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