SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी संयोग से इसका गिरना हुआ और नीचे से ट्रक का आना. वह रूई की गांठ पर आकर के गिरा, ऐसा गिरा कि जरा भी शरीर को चोट नहीं लगी. बेहोश हो गया. लोगों ने देखा लोग चिल्लाये. ट्रक ड्राइवर घबरा कर सीधा भाग कर गाड़ी पुलिस स्टेशन ले गया. कहा कि मेरे ऊपर किसी ने कत्ल करके शव डाल दिया है. पुलिस आई और देखा कि आदमी तो मरा हुआ नहीं हैं, सांस ले रहा है, जीवित है - पुलिस वाले तुरन्त एम्बुलेन्स बुलाकर अस्पताल ले गए. थोड़े समय में व्यक्ति की मूर्छा दूर हुई. जब उससे पूछा गया तो सारी हकीकत सामने आई. उस व्यक्ति से जब बाजार में लोगों ने पूछा तो कहता है कि नवकार का समर्पण मेरे रक्षण का कारण बना. जिस दिन परमात्मा का समर्पण भाव अपने अन्दर में आ जाए, यह रक्षण तो आपको सहज में मिल जाएगा. कहीं भटकने की जरूरत नहीं. यह तो पूर्व व पुण्य है जो आपको मिला हैं, जिस दिन पुण्य में दुष्काल आएगा, लाख थापा मार लीजिए कुछ नहीं मिलेगा. भगवान महावीर अनन्त पुण्यशाली आत्मा थे. जन्म से देवों के द्वारा पूजित, ऐसे परमात्मा महावीर जब दीक्षा लिए तो उन्हें भी साढ़े बारह वर्ष तक कर्म की मार खानी पड़ी थी. जिस दिन वह दीक्षा लेकर के प्रयाण किये, विहार किये, उस दिन से उपसर्ग शुरू हो गया. उनके कानों में कील ठोक दिये गये. पांव में चूल्हा बनाकर लोगों ने खीर पकाई. किसी भी देवता ने आकर भगवान को नहीं बचाया. किसी ने भी आकर के ग्वाले का हाथ नहीं पकडा कि क्या कर रहा है? कानों में कील ठोक करके क्या पाप उर्पाजन कर रहा है? परमात्मा महावीर जिसके पुण्य में कोई कमी, कोई दुष्काल नहीं, उन्हें भी उपार्जन किया हुआ कर्म वर्तमान में भोगना पड़ा. महावीर ने स्वीकार किया कि इन कर्मों को अज्ञान दशा में मैंने ही आमंत्रण दिया हैं और इनकी उपस्थिति में मैं उन्हें स्वीकार करूंगा. कैसी अपूर्व साधना या आत्मा के प्रति समर्पण था? आत्म गुणों की मग्नता में लीन थे. जरा भी ध्यान नहीं दिया कि एक देवता ने बारह वर्ष में आकर महावीर का रक्षण किया. आपके जरा से लड्डू या पेड़ा चढाने में क्या वे आ जायेंगे. आपकी नौकरी करते हैं कि आपके गुलाम हैं या ऐसा कोई पुण्य महावीर से ज्यादा लेकर के आये हैं जो आ जायेंगे. ___एक माला गिना, पुकारा और देवता हाजिर. इस भ्रम में आप मत रहना. आप पूजा करें, प्रार्थना करें आपकी परम्परा से है, मैं निषेध नहीं करता. परन्तु इच्छा और तृष्णा लेकर के मत जाना. वे कोई रक्षण करने वाले नहीं. भगवन महावीर का रक्षण नहीं हुआ तो आपका क्या रक्षण करेंगे. राजा रामचन्द्र महान पुण्यशाली, मर्यादा पुरुषोत्तम. वे भी उसी भव में मोक्ष में गये और एक भी देवता ने आकर राम से नहीं कहा कि आप चिन्ता न करें, सीता को लाकर मैं हाजिर करता हूं. क्या राम से ज्यादा पुण्य आप में हैं कि आपने आदेश दिया या रात्रि में प्रसाद चढाया और लक्ष्मी सुबह आकर नोट की पोटली आपकी तिजोरी में डाल जाय? न 195 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy