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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी उस शुभ परमाणु में इतनी प्रचण्ड ताकत है कि अज्ञान के अंधकार का नाश कर देता है. अशुभ परमाणु भी शुभ में परिवर्तित हो जाते हैं. कर्म के अन्दर संक्रमण की क्रिया शुरू हो जाती है. परमात्मा की शरण का चमत्कार कि उसके कर्म में भी रूपान्तरण हो गया. उसे विचार आया कि रास्ता मिल गया. इसमें इतना आत्म-विश्वास पैदा हो गया और उसने सोचा कि ये चाहे मुझे कहीं भी ले जायें, प्रभु मेरा रक्षण करेगा. मन में कोई डर नहीं. उसको मरने की भी कोई चिन्ता नहीं, सिर्फ एक ही चिन्ता थी कि परमात्मा का पूजन करके निकला हूं. माथे पर तिलक लगा हुआ है. लोग क्या कहेंगे. धर्म का अनुरागी था, बाजार का पैसा लेकर भाग गया. घर की बदनामी, मेरे धर्म की बदनामी होगी. वह मेरे प्रभु की बदनामी होगी जिसे मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता. लोग इशरा करेंगे. उनको क्या मालूम कि मेरे साथ क्या परिस्थिति गुजरी. मुझे किस प्रकार की समस्या का मुकाबला करना पड़ा, लोग तो समझेंगे, माल के साथ दलाल गायब हो गया. यह बदनामी बड़ी खतरनाक होगी और अपने ही धर्म को बदनाम करने का मैं निमित्त बनूगां. निर्णय कर लिया कि प्राणों की बलि देकर भी मुझे अपने धर्म की रक्षा करनी है. गुण्डों ने उसे ले जाकर एक कमरे में बन्द कर दिया और कहा कि अब तुम्हारे बचने का कोई उपाय नहीं है. सरदार आकर सारा माल लूटकर तुम्हें मार कर नदी में फेंक देंगे. तुम अपनी अन्तिम इच्छा बता दो. उसने कहा मेरी कोई इच्छा नहीं है. कभी भी मार सकते हो. तुम्हारी मर्जी में जो आये वैसा व्यवहार कर सकते हो. वह दृढ़ निश्चय था. उसे पूर्ण आत्म विश्वास था और वही नवकार मन्त्र का स्मरण कर रहा था.. उसके मन में एक विचार आया कि किसी तरह अपने धर्म की रक्षा करूं. प्रभु से यह प्रार्थना कर रहा था कि जो मेरे पास दूसरों की सम्पत्ति है उसे वापस कर सकं, वरना मेरा धर्म परिवार कलंकित हो जाएगा. अचानक पेशाब की शंका से पेशाब गृह में गया और रोशनदान खुला था. उसमें सिर्फ कांच था, जाली नहीं थी. मन में सोचा प्रभु तेरी कृपा से रास्ता मिल गया. अब नीचे गिर के मर जाऊंगा और लोग हजारों इकट्ठे हो जाएंगे. पुलिस आ कर मेरी मेरी पाकेट से माल प्राप्त करेगी. मेरे पर्स के अन्दर मेरे घर का पता है. बाजार वालों को भी मालूम पड़ जाएगा कि इस प्रकार दुर्घटना में मेरी मौत हुई. माल सुरक्षित रहेगा. मेरी इज्जत बच जाएगी. मुझे मरने की चिन्ता नहीं पर प्रभु धर्म कभी बदनाम नहीं होना चाहिए. देखिए दृढ़ निश्चय और निश्चय का परिणाम. जोर का एक धक्का लगाया और रोशनदान के कांच को तोड़ दिया. परमात्मा का स्मरण कर "अरिहन्ते शरणं पवज्जामि" बोलकर दो मंजिल से नीचे कद गया. तकदीर का सिकन्दर था मिल से रुई की गठरी आ रही थी और जैसे ही वह ट्रक नीचे से गुजरा 194 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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