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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी दीवाली के दिन व्यक्ति पूरी रात दरवाजा खोलकर दुकान के अन्दर बैठते हैं कि शायद भूल से कहीं लक्ष्मी आ जाये. देखिये आप करते हैं, आपकी श्रद्धा, मैं आपका निषेध नहीं करता. परन्तु आप जरा विचारपूर्वक कार्य करेंगे तो आपको आनन्द आयेगा. मैं तो अन्धश्रद्धा पर चोट कर रहा हूं. ये अन्धविश्वास क्या देने वाले हैं? उनके पास क्या ताकत. मेरे प्रारब्ध में जो होगा मुझे वहीं मिलेगा. मैं जरा भी इस अन्धविश्वास को मानने वाला व्यक्ति नहीं, मैं जरा भी ऐसी मान्यता नहीं रखता.. सारी दुनिया उसी के पीछे है. राजा रामचन्द्र जी के पुण्य में कोई कमी नहीं थी परन्तु एक भी देवता ने आकर राम का रक्षण नहीं किया. उन्हें चौदह वर्ष तक बनवास में भटकना पड़ा. पाण्डवों को भी सहन करना पड़ा. कोई देवता पाण्डव के पास आकर नहीं कहे कि आप किस मुसीबत में आ गये, मैं आपकी सेवा में बैठा हूं. द्रौपदी के साथ इतना गलत व्यवहार किया गया. तो क्या कोई देवता आये थे? वह तो योगेश्वर कृष्ण ने आकर के उसके शील की रक्षा की क्योंकि यह उसके पुण्योदय का प्रतिफल था. योगेश्वर कृष्ण जो जगत का रक्षण करने वाले हैं, हमारे भावी तीर्थंकर की आत्मा हैं, वासुदेव की सारी द्वारिका जल कर के राख हो गई. कोई देवता आकर के आग नहीं बुझाये, न उनकी रक्षा की. इतिहास की सारी घटनाएं आपके सामने हैं फिर हम अंधविश्वास क्यों करें एक परमात्मा को छोड़कर बाहर भटकने की ज़रूरत ही क्या है. एक में विश्वास रखिये अनेक स्वयं आ जायेंगे. आपके जीवन की साधना ऐसी हो कि देवता आपकी सेवा में बिना बुलाये, बिना आमन्त्रण आकर के हाजिर हों.. सुदर्शन सेठ को इनाम में मौत की सजा मिली. उन पर गलत आरोप लगाया गया था. वह महारानी की तरफ से दुराचार का आरोप था. रानी की वासना की पर्ति नहीं हुई. अभयाराणी ने उस पर ऐसा आरोप लगा दिया कि मेरे साथ गलत व्यवहार कर रहा था. राजा ने सोचा मेरी रानी के साथ गांव के सेठ ने इतना धार्मिक होकर ऐसा गलत कार्य किया तो इसको सूली की सजा दी जाये. जब सूली के पास ले गये तो राजा और रानी को धन्यवाद दिया कि मेरी मौत का महोत्सव मनाने का आशीर्वाद दिया है. क्या पता सोते हुए मर जाता क्या पता दुर्घटना में मर जाता. हो सकता है, बीमारी में मर जाता. ऐसी परिस्थिति में यदि मौत आ जाये, और प्रभु का नाम लेना मैं भूल जाऊं, हो सकता है कि जीवन हार के मैं जाऊं. मेरा परलोक बिगड़ जाये. मुझे दी गयी यह मौत नहीं, मेरे लिए महोत्सव है. उसने और किसी देवता का स्मरण नहीं किया बल्कि सिर्फ प्रभु महावीर पर अपने ध्यान को केन्द्रित रखा. वह कायर नहीं था. उसका संकल्प दृढ़ था और मौत के डर 196 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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