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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - A कबीर ने अपनी भाषा में आनन्दघन जी को जवाब दिया चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोय, दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय। वह बोले, थोड़े समय पहले एक जवान आदमी को अन्तिम संस्कार के लिए ले गये उस बेचारे ने अपना अन्तिम जीवन भी नहीं देखा और वह भरा हुआ संसार छोड़ करके चला गया. यह देखकर मेरे अन्दर दर्द पैदा हो गया और उस आत्मा के प्रति करुणा प्रकट हुई जो नेत्र से आंसू बनकर के बाहर आई. बड़ा लाचार हूं. इस जगत् की इस चक्की में आज तक कोई नहीं बचा. अच्छे-अच्छे पिस गये. सुरक्षा लेकर के चलने वाले भी मारे गये. यहां कोई गार्ड बचाने वाला नहीं. कोई आपके मकान की दीवार या दरवाजा, कोई भी मौत को रोकने वाला नहीं है. ऐसी कमजोरी की दशा देखकर के मेरे नेत्र में दर्द के आंसू आ गए. ____ आनन्दघन जी महाराज ने कहा – कबीर तुम्हारे रोने से संसार के इस शाश्वत धर्म, में सत्ता में कोई परिवर्तन आने वाला नहीं. तुम्हारी समस्या का समाधान मेरे पास है. तुम्हारे प्रश्न का सही उत्तर में देता हूं. जरा विचार कर लेना, अगर बचना है तो एक मात्र उपाय यही है. आनन्दघन जी भी एक महान कवि थे. उन्होंने अपनी भाषा में उसी प्रकार उत्तर दिया. आनन्दधन जी ने कहाः "चलती चक्की है तो चलने दे, तू क्यों कबीरा रोये, खीले से जो जा लगे, तो बाल न बांका होय।" घर के अन्दर चक्की होती है. आप देखना बीच में एक धुरी (खील) रहती है. यदि आप चक्की चला रहे हों और गेहूं पीस रहे हों दो चार दाने समझदार होते हैं, वे अगर धुरी में चले जायें और समर्पित हो जायें – “त्वमेव शरणम्" पूरी घण्टी पीस डाली उसका बाल बांका नहीं होता. परन्तु जो दाने यह अहंकार लेकर आते हैं कि मैं कुछ हूं - आई ऐम समथिंग, आई हैव समथिंग, तो वे साफ हो जाएंगे. यह सुनकर कबीर को बड़ा मानसिक संतोष मिला. हमारे यहां भी सही कहा है कि सन्त परमात्मा का समर्पण जिस व्यक्ति ने ले लियाः __अरिहंते शरणं पवज्जामि जगत में वही एक मात्र शरण एवं रक्षण का उपाय है. बाकी तो जगत् की चक्की में अनाज की तरह पिस कर चला जाता है किसी का नामो-निशान भी नहीं रहता. परिणाम यह हुआ कि उस जौहरी को जैसे ही गुण्डों ने पकड़कर उसे गाड़ी में डाला था. उसने नवकार महामन्त्र गिनना शुरू कर दिया. यही मेरा रक्षण करने वाला है और कौन रक्षण करेगा. परमात्मा के स्मरण से पाप का प्रतिकार होता है. दुर्भाग्य का नाश होता है. 193 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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