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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी बालक का हृदय बड़ा निष्कपट होता है. वह बड़ा सरल होता है. आप यदि बालक की पुकार नहीं सुनें तो आगे चलकर बालक मां से हठ करता है. चिल्लाएगा, मुझे दिलाओ. मा डांटती है. बाप फटकारता है. खबरदार परन्तु बालक से रहा नहीं जाता और आगे चलकर यदि बालक रोने लग जाये और रोना बन्द ही न करे, जो उसका सबसे बड़ा शस्त्र है तो आप क्या करेंगे? आपका हृदय पिघलेगा या नहीं. परमात्मा के द्वार पर जाएं, बालक बन कर या निर्दोष बन कर के जाएं. और हठ पकड़ें की मुझे मोक्ष दो. मेरे अन्दर सद्भावना दो. मैं तेरे द्वार पर यह मांगने आया हूं और इसे लेकर के ही जाऊंगा. ____ यदि परमात्मा पुकार सुने, तो रोना शुरू करें. यह साधना का उत्तम प्रकार है. रो करके आसुओं से प्रार्थना करें कि भगवान तेरे द्वार से अब तो लेकर के ही मुझे जाना है. त कितना भी मझे कहे. मझे नहीं सनना है. अगर परमात्मा के पास ऐसा आग्रह आपमें आ जाए या यों कहिए सत्य और सद्भावना को प्राप्त करने का आग्रह आ जाए, यदि प्रार्थना रुदनपूर्ण हो जाए, तो परम पिता इतना करुणानिधान है कि आपकी भावना वह अवश्य ही पूर्ण करे. परन्तु रोकर के आज तक प्रभु के द्वार पर भीख मांगी ही नहीं, अन्तर्हृदय से कभी दर्द लेकर परमेश्वर के पास गए ही नहीं.. एक बार जंगल में सिंह का बच्चा कहीं चला गया. कभी उसने संसार के अन्दर पशुओं को नहीं देखा था. जन्म को थोड़े महीने हुए थे. छोटा-सा बालक घूमते-घूमते जंगल में अचानक घबरा गया. बहुत बड़ा हाथियों का झुण्ड आ रहा था. उसने जीवन में पहले ऐसी घटना कभी नहीं देखी थी. भय से घिर गया. दौड करके आया और अपनी मां की गोद में सो गया. सिंहनी विचार में पड़ गई. शरीर थर-थर कांप रहा था. सिंह की सन्तान और शरीर के अन्दर भय का कम्पन था. उस बालक का चेहरा एकदम उतरा हुआ था. सिंहनी ने कहा तुझे क्या हआ? मेरे दूध को कलंकित कर दिया, परिवार को कलंकित कर दिया. क्या हआ तुझे? यह भय कैसे आया. सिंह की सन्तान में तो कभी भय होता ही नहीं, वह तो निर्भय रहता है. बालक ने कहा – क्या बताऊं. मैंने इतना भयंकर एक प्राणी देखा कि यदि उसका पांव मेरे ऊपर गिरे तो मेरा शरीर चटनी बन जाए. वह इतना विशालकाय, उसको देखकर मैं घबरा गया. सिंहनी समझ गई कि भय की कल्पना से ही बालक डर रहा है. इसको मालूम नहीं कि उसके पिता में कितनी प्रचण्ड शक्ति है. बालक मां सिंहनी की गोदी में सोया था. सिंहनी ने कहा - तेरे पिता की शक्ति पर तुझे विश्वास नहीं, अरे कहीं जाने या छिपने की जरूरत नहीं. कोई भय करने की जरूरत नहीं, यहां से एक बार अपने पिता 171 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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