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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी गरीब परिवार में जन्में एक बच्चे से बच्चों के साथ खेलते समय किसी बच्चे ने इतना ही कहा (ग्वाले का लड़का था) - आज मेरी मां ने खीर खिलाई है. तुमने कभी खीर खाई है? वह निर्दोष बालक दस-बारह वर्ष का था. उसने कहा, खीर क्या होती है? मुझे मालूम नहीं. तू अपनी मां से पूछ. क्या सुन्दर स्वाद है उसके अन्दर, क्या मीठा है. खाकर के तबियत खुश हो जाए. बच्चों की बात सुन करके उसके मन में विचार आ गया. घर आकर मां से जिद की और कहा – मां मेरे लिए खीर बना, मुझे खीर खानी है. बालक के हठ की तरह जिस दिन परमात्मा को पाने के लिए हट आ जाए, उस दिन कल्याण हो जाए. आप देखिए, रास्ते में जाते समय यदि बालक किसी चीज पर नजर डालता है, और कहे कि यह चीज़ मुझे दिलाओ. बाप कहेगा – नहीं-नहीं ऐसे तो बाजार में बहुत चीजें आती हैं. प्रत्येक वस्तु को मांगने का बालक का स्वभाव है. बालक बड़े निर्दोष होते हैं, आप उनसे कितना भी छिपाएं परन्तु वे अपनी बात कहे बिना नहीं रहेंगे. मफतलाल दिल्ली से बम्बई किसी शादी में जा रहे थे. साथ में तेरह साल का छोटा-सा बालक था, पर दस साल का देखने में लगता था. बम्बई जाना जरूरी था. बालक बड़े निष्कपट होते हैं. वे अपनी सच्चाई प्रकट कर देते हैं. मफतलाल ने तेरह वर्ष के बालक के लिए भी आधा टिकट लिया और उसको कहा कि यदि टिकट निरीक्षक आए और उम्र पूछे तो उसे दस वर्ष बताना. उसने हाँ कर लिया. वह बाप की कमजोरी समझ गया था. ___ गाड़ी ने रात्रि में मथुरा पार किया, और उसी समय टिकट निरीक्षक आ गया. एक बार सच कह दिया कि दस साल का हूँ और वह उतर गया. आगे जैसे ही अगले स्टेशन पर गए. बालक की नज़र बाहर गई. कोई मनपसन्द चीज़ स्टेशन पर थी. बाप से कहा कि मुझे दिला दो. मफतलाल ने कहा - ऐसे कोई चलते रास्ते चीज़ दिलाई जाती है. हर स्टेशन पर नई चीज आयेगी. इस तरह पैसे नहीं खर्चना चाहिए. पहले कमाना सीख. उसके बाद लेना. पिताजी अगले स्टेशन पर कह दूंगा कि मैं तेरह साल का हूं मफतलाल समझ गया कि यहां गड़बड़ हो जाएगी. बालक से कहा - तेरे को जो कुछ लेना है, ले ले. उसने बम्बई तक डबल टिकट वसूल कर लिया. मफतलाल को अकल आ गई. ज्ञानियों ने कहा कि ये कर्म हैं. असत्य के द्वारा यदि एक बार प्राप्त कर लिया तो दे देगा, परन्तु याद रखिए ये ब्याज सहित वसूल कर लेंगे. यह प्रकृति है. छोड़ेगी नहीं. 170 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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