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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: को चीत्कार कर. देख, तेरे पिता में कितनी ताकत है, तेरा सहज में रक्षण हो जाएगा. सारे भय दूर हो जाएंगे. उसके बाद से उस बालक ने कुछ भी नहीं किया. न कभी भागा और न ही कभी छिपने का प्रयास किया. अन्तर्हृदय से उसने पिता को पुकारा और ऐसी चीत्कार की जिसके अन्दर दर्द भरा हुआ था. अन्तर्हृदय की पुकार थी. पास में ही सिंह शिकार के लिए गया था. बालक की उस पुकार को सुनकर उसके मन में विचार आया कि यह दर्द कहां से आया. इस पुकार में यह भय का कम्पन कैसे आया. छलांग लगाकर दौड़ता हुआ सिंह आया और आते ही सारी समस्या उसे दृष्टिगत हुई. हाथियों का झुण्ड आ रहा था. समझ गया कि बालक इसे देखकर के डर गया. उसने एक गर्जना की और सारे हाथी पूंछ उठाकर भाग गए. सिंहनी ने अपने बच्चे से कहा – देखा! पिता की पुकार का चमत्कार. एक क्षण में भय चला गया. आप यह समझ लेना ये परम पिता परमेश्वर अनन्त शक्तिमय हैं, कभी घर में बैठे हुए कोई ऐसे कर्म का भय आ जाए, कोई शत्रु यदि आक्रमण के लिए आ जाए, तो एक बार से जिसमें दर्द हो उस परम पिता को पुकारिए. अन्तर्हृदय से जिसमें परमात्मा को पाने की भावना हो. उस परमात्मा के नाम के चमत्कार एक क्षण के अन्दर संसार का भय चला जाएगा. अन्दर दर्द चाहिए. वह पुकार आपके हृदय की भाषा में होनी चाहिए. जीभ की भाषा में नहीं, बालक की तरह से निर्दोष बन जाइये. वह बालक अपनी मां से आग्रह करने लग गया, मुझे खीर पिला. माँ बहुत विचार में पड़ गई. बालक ने कहा कि मेरे साथियों ने कहा कि खीर में बड़ा आनन्द आता है. उसमें बड़ा स्वाद आता है. मां लाचार थी. घर की ऐसी परिस्थिति नहीं कि वह बच्चे के लिए खीर बना सके. पड़ोस में गई दो चार मिलने वालों से उसने निवेदन किया. मेरे बच्चे को आज खीर बना कर खिलानी है. बहुत जिद कर रहा है. कहीं से शक्कर कहीं से दूध, कहीं से चावल लेकर के आई और लाकर के बच्चे के लिए खीर बनाई. ___ बड़ी सुन्दर खीर बनी. मां ने बड़े वात्सल्य से, उस बच्चे की थाली में खीर डाली और कहा बेटा - यह तेरे लिए बनाई है. तू पूरी खीर आज पी जा. मां बालक को सन्तोष देने का प्रयास कर रही थी. किसी कारण से मां पड़ोस में किसी काम से गई. अचानक एक महीने का उपवास किये हुए महान तपस्वी कोई सन्त बालक के द्वार पर आए. जैसे पुण्य की लाटरी खुलने वाली हो. उस बालक में एक दम विचार आया कि मेरे जैसे दरिद्र के यहां यह लक्ष्मी. साधुओं को उसने लक्ष्मी की उपमा दी. सन्तों का आगमन, धर्म लक्ष्मी का आगमन. उस लक्ष्मी से आत्मा के वैभव और गुण की प्राप्ति होती है. धर्म लक्ष्मी है. वह साधु-सन्तों के माध्यम से घर में आती है. 172 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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