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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी "डाक्टर साहब दूध ग्लास में लेना है या लोटे में?" डाक्टर विचार में पड़ गया और उसने कहा "देखिए अस्पताल में जाकर दिमाग दिखाइये. आप मेरा दिमाग मत खाइये. " “अरे! डाक्टर साहब! मैंने पांच सौ रुपया फीस दी है. मुझे पूरी बात तो पूछने दीजिए. वापिस दिल्ली जाकर के यहां कब लौटूंगा. सारी हकीकत मुझे जान लेने दीजिए. " डाक्टर ने उठाकर फीस का पैसा लौटा दिया "मेहरबानी कीजिए, दस मरीज और भी बैठे हैं. मेरा समय जा रहा है. आप अपनी फीस ले जाइये. मैं समझंगा मैंने परोपकार किया. " "अरे डाक्टर साहब! यह कैसे हो सकता है? आपने मुझे समय दिया मैं इतना पैसा खर्च करके आया. आप फीस लौटा रहे हैं. यह ठीक नहीं है. कृपया आप मुझे बतला दीजिए. " डाक्टर ने देखा यह पीछा नहीं छोड़ रहा है. उसने रुपये निकाले और कहा "मेहरबानी करके यह दवा दस रुपए में मेरी ओर से ले जाना दस रुपये आपको भाड़े का भी देता हूं. टैक्सी में चले जाना. आप जा सकते हैं. फिर कभी अगर ज़रूरत पड़े तो फोन कर लेना. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir डाक्टर ने उठ करके उनको दरवाजे तक पहुंचाया. आदत से लाचार बाहर से फिर आये. डाक्टर ने कहा यह मूर्ति वापिस कैसे आई ? पहले आप किसी मेन्टल उसने कहा "डाक्टर साहब! जाते-जाते एक प्रश्न और रह गया. आपने दस के दो नोट दिए. टैक्सी वाले को कौन-सा नोट देना है ? और दवा किस नोट से लेनी है." - डाक्टर ने कहा • " मेहरबानी कीजिए. दवा मेरे पास नमूने के तौर पर बहुत आई है, आप ले जायें. मेरी गाड़ी आपको गंतव्य स्थान तक पहुंचा देगी. रुपया भी अपने पास ही रखिए. " हमारी आत्मा तर्क-वितर्क से पूर्णतः ग्रस्त है, आच्छादित है. इसीलिए शंकराचार्य जी को कहना पड़ा " शब्दजालं महारण्यं, चित्तभ्रमणकारणम्” इस शब्द के जाल में आत्मा को मत उलझाना नहीं तो उस तर्क के जंगल में से स्वयं को खोजना और निकालना बहुत मुश्किल होगा. यहां तो श्रद्धा की भूमिका चाहिए. परमात्मा में पूर्ण विश्वास होना चाहिए. हाँ, तो वह व्यक्ति जो साधु के पास परमात्मा की खोज में तर्क की कसौटी पर मापने निकला था, अपनी विद्वता पर उसको बड़ा गर्व था और अब व्यावहारिक रूप से परमात्मा को देखने की जिज्ञासा से साधु से निवेदन करने लगा. 167 सन्त ने देखा कि वह मानने वाला नहीं. कितना भी समझाने का प्रयास किया जाये, परन्तु इनको प्रयोग द्वारा ही समझाया जाए. सन्त ने कहा आप प्यास लेकर के आये For Private And Personal Use Only -- च
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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