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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir -गुरुवाणी हैं कि आपको परमात्मा को पाना है, देखना है. हां! आपने बहुत प्रयास किए. बहुत तीर्थ स्थानों और बड़े-बड़े सन्तों के पास गए. आज तक ध्यान और जप के द्वारा कितने ही ऐसे मंगल अनुष्ठान किए. परन्तु आत्मा की अनुभूति आज तक नहीं हुई. ___ आपको हमारे जैसे की कोई जरूरत नहीं. अगर प्यास में पूर्णता है तो परमेश्वर का साक्षात्कार निश्चित हो जाएगा. आपमें थोड़ा अधूरापन है. इसलिये आप भटकते फिरे और परमात्मा की दशा की अनुभूति आपको नहीं हुई. चलिए मेरे साथ गंगा में स्नान कीजिए. पवित्र बनिए. मैं आपको परमात्मा का साक्षात्कार इसी समय कराता हूं. इसी क्षण आपको अनुभूति हो जाएगी और आपका अधूरापन भी आपके ध्यान में आ जाएगा. वे बड़े पहुंचे हुए ब्रह्मचारी सन्त थे. सामने वाले व्यक्ति ने गंगा में डुबकी लगाई, स्नान किया. जैसे ही उसने स्नान के लिए गंगा में पांव रखा, वह सन्त भी साथ उतरे और जैसे ही उसने डुबकी लगाई, गर्दन दाबा, जोर से दाबा. गर्दन दाब देने से श्वास घुटने लगी. बहुत बैचेनी हुई. बहुत बड़ी ताकत लगाई उसने और बड़ी मुश्किल से अपनी गर्दन ऊपर कर पाया क्योंकि श्वास नहीं ले सका. अन्दर में बड़ी घबराहट हुई. ऑक्सीजन मिली नहीं, बैचेनी रही. सारी शक्ति लगाकर अपने माथे को ऊंचा किया और कहा - स्वामी जी, यह कौन-सा तरीका है परमात्मा की अनुभूति और दर्शन करने का? __ स्वामी जी ने कहा - "जैसे तेरा प्रश्न था, वैसा ही मेरा उत्तर. मैंने जब आपकी गर्दन इस पानी में जोर से दबायी, आप छटपटाने लग गये. मुझे बतलाइये उस समय आपको क्या याद आया - दुकान, मकान था, परिवार? आप उस समय क्या विचार कर रहे थे? भगवन्, सारे विचार मर गए थे. मूर्छित हो गए थे, एक विचार था, मैं श्वास कैसे लूं. इतनी बैचेनी थी और जी अन्दर से घुट रहा था. मैंने सारी शक्ति केन्द्रित करके ताकत लगाकर अपना माथा ऊंचा किया. एक ही इच्छा, विचार था कि मैं श्वास कैसे लूं? बाकी सब विचार मर चुके थे. न मैंने दुकान देखी, न मकान देखा और न परिवार याद आया. संसार की कोई भी बात मुझे याद नहीं आई. स्वामी ने कहा - मैंने आत्मा से परमात्मा को देखने की टेकनीक बतला दी. आप जिस दिन सब कुछ भूल जाएंगे और आपके अन्दर मात्र यह जीवित रहेगा कि मैं परमात्मा या आत्मा का साक्षात्कार करूं फिर मेरे जैसे की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और आपको स्वयं अनुभव हो जायेगा. अब आप बात समझ गए होंगे. अभी तो सारे विचार जागृत हैं, सक्रिय हैं, न जाने कहां-कहां भटकते हैं. मन कहां-कहां जाता है. धर्म साधना भी करते हैं और भटकते फिरते भी हैं. एक योग्य व्यक्ति चन्दूलाल सेठ सामायिक में बैठे प्रार्थना आदि क्रिया कर रहे थे. __ कोई सन्त पुरुष आहार के लिए गए. A 168 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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