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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - पीडित न रहे और वह मृत्यु को प्राप्त न हो. ये जीवित परमात्मा हैं और मुझे यह यज्ञ आप करने दीजिए. मेरा इसमें कोई प्रयोजन नहीं है. लोग भूख से तड़प कर के मर रहे हों तो आप परमात्मा को प्रसन्न नहीं कर सकते. आज चारों तरफ दुष्काल का प्रभाव है. प्रतिदिन देखते हैं -- पशु मर रहे हैं, मानव मर रहे हैं, न जाने क्या-क्या हत्या कर डालते हैं. ऐसी परिस्थिति में आपको विचार बदलना चाहिए. विवेकानन्द का शाब्दिक प्रहार उनकी चेतना को जागृत कर गया और उनको विचार बदलना पड़ा और उन्होंने लाखों रुपए का फण्ड विवेकानन्द के पास ला कर दिया और विवेकानन्द जी ने भूख से पीड़ित लोगों के कल्याण के लिए उसका उपयोग किया. ____ मैं नहीं कहता कि यह धार्मिक कार्य या अनुष्ठान गलत है. परन्तु समय के अनुरूप, व्यक्ति, काल, भावों को देखकर के, लोगों के परिणाम को देखकर ही कार्य करें, चाहे कितना भी शुभ कार्य हो परन्तु यदि लोक रुचि न हो, लोगों की, प्रसन्नता न हो, और यदि आप करें तो लोक निन्दा का कारण बनेंगे. लोग धर्म से विमुख बन जाएंगे कि हम तो भूख से मर रहे हैं और यहां देखो इनको धर्म सूझ रहा है. इसीलिए यहां इसको महत्त्व दिया गया कि ऐसा कोई कार्य नहीं करना जिससे हमारे जीवन से, हमारे आचरण से, हमारे कार्य से लोग धर्म से विमुख बनें. हमारा प्रयत्न लोगों को धर्म के सम्मुख ला कर खड़ा करना है. जीवन का प्रत्येक कार्य धार्मिक प्रेरणा का कारण बन जाए, परन्तु ऐसा कोई अशुभ निमित्त नहीं देना कि जिससे इस परिस्थिति का सृजन हो. हमें महान पुरुषों द्वारा किए कार्यों से उत्प्रेरित होना है तथा उनके द्वारा निर्दिष्ट पथ का अनुगमन करना है. तदनुसार ही आचरण करना है. एक समय था लोग सुखी थे, सम्पन्न थे. जीवन की कोई समस्या नहीं थी. लोगों ने बड़े आलीशान मन्दिर बनाये. बड़े अदभुत मन्दिर तैयार किए, क्योंकि उस समय उसकी बड़ी आवश्यकता थी. हमारे देश की संस्कृति में इसका बड़ा महत्त्व रहा है. वे हमारी भारतीय संस्कृति और परम्परा के प्रतीक हैं. भारत का इतिहास मन्दिरों से जुड़ा है. उस समय लोगों की मनोवृत्ति कैसी थी, उसका यह परिचायक है, मंगल प्रतीक है क्योंकि सुखी लोग थे, संपन्न थे, किसी के पेट में भूख की वेदना नहीं थी और उस समय कला का सुन्दर निर्माण हुआ. हजारों-लाखों मन्दिर बनाए गए. परन्तु आज परिस्थिति बड़ी विचित्र है. मन्दिर विद्यमान हैं परन्तु लोगों की भावना खत्म होती जा रही है. एक समय था, जब मन्दिर तोड़े जाते थे. हमारी भावना इतनी जागृत थी कि एक तोड़ते तो एक दर्जन मन्दिर बनते थे. लोग सम्पन्न थे. लोगों में प्रसन्नता थी, मंदिर निर्माण हो जाता, परन्तु अंग्रेजों के समय से लगभग 1500 वर्षों की अवधि में शिक्षा का इतना पतन और दुष्प्रभाव रहा कि मन्दिर विद्यमान रहता है, जाने की भावना खत्म कर दी जाती है. 'वह हिस्टोरिकल प्लेस (ऐतिहासिक स्थल) है.' ऐसा कहकर उससे जुड़ी हमारी आस्था की हत्या कर दी जाती है और श्रद्धा का अपूर्व सौन्दर्य मात्र कला का प्रतीक बन कर रह जाता है. पश्चिमी सभ्यता और अत्याधुनिक शिक्षा की भयावह आँधी से आज का स्वार्थी । - 125 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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