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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी: वर्तमान काल को देख कर भगवान महावीर के शब्दों में कहा जाए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार कार्य करें. द्रव्य का मतलब लोगों की आत्मा के परिणाम. विशुद्ध द्रव्य आत्मा है और उसके परिणाम, उसी को देखकर के कार्य करना कि कर्म उचित है या नहीं. क्षेत्र देखना कि यह क्षेत्र, यह प्रान्त, यह प्रदेश हमारे कार्य के अनुकूल है या नहीं. अलग-अलग प्रदेश की अलग-अलग रुचि होती है. उनकी संस्कृति तथा प्रादेशिक परम्परा अलग होती है. उसे देख कर के निर्णय करना चाहिए. काल देखना, लोग क्या चाहते हैं, समय की पुकार क्या है और यदि समय से विपरीत होकर हम कार्य करेंगे तो निन्दा मिलेगी, ईर्ष्या मिलेगी, लोगों का आवेश मिलेगा और मन की अशांति मिलेगी. लोगों का भाव भी देखना आवश्यक है कि उनका अन्तर्भाव किस तरह का है. "लोकापवादभीरुत्व" इस प्रथम सूत्र के द्वारा शिष्ट आचरण का लक्षण बताया गया है. बंगाल में भयंकर दुष्काल पड़ा था. स्वामी विवेकानन्द उस समय बंगाल में मौजूद थे और ऐसी परिस्थिति, कि लोग दाने-दाने के लिए तरसने लगे. उस काल और समय में लोगों के अन्दर बहुत ही श्रद्धा थी. धार्मिक आस्था भी बहुत प्रबल थी. वहां की प्रजा में भी बड़ी सुन्दर धार्मिक आस्था थी. लोगों ने मिल कर के लाखों रुपयों का एक फण्ड इकट्ठा किया, ताकि बहुत बड़ा यज्ञ वहां पर किया जाये, अनुष्ठान किया जाये. पैसा तो इकट्ठा हो गया. श्रीमन्त लोग थे, उच्च कुलीन लोग थे. लाखों रुपयों के करीब फंड इकट्ठा हो गया. रुपये एकत्र करके उन्होंने अपनी एक कमेटी बनाई और विचार किया कि स्वामी जी को जाकर निमन्त्रण दिया जाये कि इस कार्य के लिए आप आइये आपकी अध्यक्षता में एक बहुत बड़े यज्ञ का अनुष्ठान किया जाये. देश, काल की परिस्थिति बड़ी विपरीत थी जनमानस अलग प्रकार का था. लोगों को पेट की चिन्ता थी. जहां तक पेट की चिन्ता होगी, वहां तक परमेश्वर का विचार कभी नहीं आएगा. तब तक आत्मा का विचार कभी नहीं आएगा. यदि संस्कारवश आ भी गया तो उसमें स्थिरता नहीं रहेगी. इसीलिए भगवान महावीर को कहना पड़ाः " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खुहा सम वेयणा नत्थि जगत् में भूख सदृश कुछ नहीं है. क्षुधा की वेदना से आहत व्यक्ति अकरणीय कृत्यों को भी कर डालता है. कभी-कभी वह हताश होकर अपने प्राण भी दे देता है. इस सम्बन्ध में एक उक्ति भी है बुभुक्षितः किं न करोति पापम्. " 124 यज्ञ के समारोह में आने के लिए विशिष्ट व्यक्ति स्वामी विवेकानन्द के पास गए और कहा कि हम लोगों ने इतना सुन्दर आयोजन किया है और उसकी अध्यक्षता आपको करनी है. वह बड़े विचारवान् व्यक्ति थे. इसी प्रथम शिष्टाचार का उन्होंने पालन किया. उन्होंने कहा इस समय तो मुझे मानव यज्ञ करना है, यह सारा पैसा आप मुझे दे दीजिए और इसका उपयोग मैं इस प्रकार के यज्ञ में करूंगा कि बंगाल में एक भी व्यक्ति भूख से For Private And Personal Use Only F
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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