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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3Dगुरुवाणी महावीर ने तो कह दिया कदाचित् अगर ऐसी भूल हो जाए तो उसका निर्देश दियाः । “चित्तभित्तिम् न जोईज्जा नारी वा सकलंकीया" उत्तराध्ययन सूत्र में कहा कि जिस प्रकार से दोपहर के समय, जब सूर्य का भयंकर ताप पड़ रहा हो, भूल से उस सूर्य की तरफ नजर चली जाने पर दृष्टि स्वयं नीचे चली जाती है, उसी प्रकार संयमी और सदाचारी पुरुष की दृष्टि, यदि दीवार पर लगे स्त्री के चित्र पर भी चली जाए तो वो संयमपूर्वक अपनी दृष्टि को संयमित करें. विवेकानन्द में कैसे गुण थे. अमेरिका जाने के बाद उनकी सुन्दरता देखकर, उनका आकर्षण देखकर कई स्त्रियां आई. एक स्त्री ने आकर जब विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा कि महात्मन्! मेरी इच्छा है कि आपकी अर्धांगिनी बनूं. उन्होंने कहा कि मेरी भी इच्छा है. मुझे भी बड़ा आनन्द होता, यदि मेरे को तेरी जैसी बहन मिलती. सुन्दर मां मुझे मिलती, बड़ा आनन्द मिलता. विवेकानन्द का जवाब सुनकर वह चली गई. विदेश जैसे अशुभ निमित्त में रहकर भी अपने को संयमित रखा. वे जानते थे. उनके पास संयम का व्रत था कि जरा भी विचार में शिथिलता नहीं आनी चाहिए. वे पूर्णतः जागत थे. अस्तु जीवन में कभी कलंक नहीं लग पाया, उनका जीवन निष्कलंकित रहा. नहीं तो उनके पास क्या कमी थी. लाखों अनुकरणकर्ता थे. बहुत बड़े-बड़े श्रीमन्त राजा-महाराज उनके अनुयायी थे. विद्वत्ता की बड़ी प्रचण्ड ताकत थी. प्रतिभा थी. सब कुछ कर सकते थे, सब कुछ करने में स्वतंत्र थे परन्तु नहीं. उनकी मर्यादा थी, और वे मानते थे कि मर्यादा में ही जीवन सुरक्षित है, और इसीलिए इतने सुन्दर विचार उनमें आए. जीवन का अन्तिम समय था और रामकृष्ण ने कहा कि मेरे पास आठ सिद्धियां हैं और वे सहज में प्राप्त हुई हैं, बिना मांगें मां की कृपा से मुझे मिली हैं और मैं चाहता हूं कि वे सिद्धियां मैं तुझे देकर के जाऊं. विवेकानन्द ने चरणों में गिरकर कहा कि इन सिद्धियों को पचाने की ताकत मुझ में नहीं है. भगवन्! कृपा करिए - यह भौतिक लालसा, संसारी प्रपंच मुझे नहीं चाहिए, मेरा जीवन जगत की दुकानदारी के लिए नहीं, इन सिद्धियों से तो जीवन का निश्चित पतन होगा, फिर भी मैं आपसे जानना चाहता हूं, भगवन्, क्या इन सिद्धियों का आत्मा से संबंध है? परमात्मा की खोज में क्या सिद्धियां सहायक हैं? क्या सिद्धियों के द्वारा मैं परमात्मा को पा सकता हूं? रामकृष्ण ने कहा कि बिल्कुल नहीं. यह सिद्धि तो जगत् के लिए है, चमत्कार के लिए है. इससे आत्मा का कोई प्रयोजन नहीं. परमात्मा से इसका कोई संबंध नहीं. __ वे चरणों में गिर गए. विवेकानन्द ने कहा – भगवन् कृपा करिए, यह जहर मुझे मत दीजिए. मुझे मत दीजिए, मुझे तो आपका अमृत चाहिए, आशीर्वाद चाहिए. मैं परमात्मा । शा 109 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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