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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Jpn tara www.kobatirth.org गुरुवाणी का उपासक हूं आत्मा की सफलता मुझे मिले और मेरी साधना उज्ज्वल बने. जगत् के प्रलोभन और प्रपंच को प्राप्त करने का यह भयंकर साधन ये सिद्धियां मुझे नहीं चाहिए. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिसके लिए आप दुनिया भर में भटकते हैं. न जाने कहां-कहां जाकर माथा टेक कर आते हैं, विवेकानन्द के सामने वे चीजें आयीं और गुरु महाराज आशीर्वाद के रूप में वे चीजें दे रहे हैं और विवेकानन्द ने कहा कि यह ज़हर मुझे मत दीजिए. मुझे नहीं चाहिए. विचार के अन्दर प्रलोभन का यदि इस प्रकार प्रतिकार कर दिया जाये तब साधना सक्रिय बनती है, तब यह शक्ति प्राप्त होती है. गुरुजनों के पास जाएं. हाथ रखा और कार्य हो जायेगा, वे परमाणु औषधि रूप हैं, कोई चमत्कार नहीं. विवेकानन्द जब पहली बार गये तो वे अर्द्धनास्तिक जैसे व्यक्ति थे. कालेज से निकल कर के आये थे और कहा कि मुझे ईश्वर के अस्तित्व में ज़रा शंका है. आप मुझे आशीर्वाद देंगे. ईश्वर के विषय में कुछ अनुभव कराएंगे? आत्मा की शक्ति के विषय में कुछ परिचय आप मुझे देंगे ? रामकृष्ण हंसे वे अति सरल थे. बड़े वैचारिक क्रान्ति वाले व्यक्ति थे. उन्होंने कहा "बेटा मेरे पास आओ ईश्वर का अनुभव करना है. आत्मा की शक्ति का तुम्हें परिचय करना है. कोई मन्त्र नहीं, कोई तन्त्र नहीं, कोई चमत्कार नहीं. मन से सकंल्प किया, दृढ़ संकल्प, और संकल्पपूर्वक विचारों से जैसे ही उसके माथे पर हाथ रखकर शक्तिपात् किया, तभी विवेकानन्द के मस्तिष्क में प्रचण्ड शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ. विवेकानन्द ने अपने अनुभव में लिखा मैंने जीवन में ऐसा प्रकाश नहीं देखा, बिजली चमकने से भी कई गुणा अधिक प्रकाश था. मैं मूर्छित हो गया बेहोश हो गया. उस शक्ति को पचा नहीं पाया. आधे घण्टे तक मूर्छित अवस्था में पड़ा रहा. जैसे ही होश आया, चरणों में गिर गया और कहा कि मैं कान पकड़ता हूं. आत्मा के अस्तित्व के विषय में आज मुझे पूर्ण विश्वास हो गया. रामकृष्ण ने कहा यह तो एक सामान्य चीज़ है आत्मा अनन्त शक्तिमय है. मेरे पास यह शक्ति कहां यह तो तुझे आत्मा के अनुभव के बारे में ज़रा-सी जानकारी दी. माथे पर हाथ रखा और तू शक्ति को पचा नहीं पाया. इन शक्तियों का तू विकास कर, ये शक्ति तेरे अन्दर भी निहित हैं. सदाचार गुण से आत्मा सहज ही इन शक्तियों का विकास प्राप्त कर लेती है. जो साधु संतों के पास आशीर्वाद की अपेक्षा से आते हैं, वे सदाचारी, ब्रह्मचारी आत्माएं होती हैं. उनके विचारों में पवित्रता रहती है. जैसे माथे पर हाथ रखा कि सारा परमाणु उसके दिमाग में उतरता है, मेडिसन बनता है, आरोग्य प्राप्त करता है, मानसिक शान्ति प्राप्त करता है, सद्भाव के द्वारा अशुभ कर्म क्षय करके पुण्य को जन्म देता है. साधु सन्त त्यागी 110 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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