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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir -गुरुवाणी: साधु महात्माओं ने वैवाहिक परम्पराओं का इसी आशय से मार्ग-दर्शन किया है ताकि विवाह ऐसा किया जा सके जिससे वह किसी प्रकार के मानसिक द्वेष और अशान्ति अथवा सामाजिक विग्रह से बचा रहे. नहीं तो आपकी शादी-विवाह से उनका क्या प्रयोजन. उसका प्रयोजन तो मात्र इतना ही था कि आपके चित्त की समाधि बनी रहे. समाज का सुन्दर रूप से विकास हो. यही उनका दृष्टिकोण था. ____ कैसी पवित्रता थी उन आत्माओं के अन्दर, जो इतना बड़ा विसर्जन कर पाईं. मन से अपने संसार का विसर्जन कर पाईं. बाहर से, व्यवहार से, उनका भोक्तृत्व नजर आता था, परन्तु उनका जीवन अन्दर पूर्ण योगमय था. जैन धर्म की दृष्टि से श्रीकृष्ण के यहां पर सोलह हज़ार रानियां थीं. वे वासुदेव थे. उनके पास कोई कमी नहीं थी परन्तु उनको योगेश्वर कहा गया, क्योंकि उनकी भोग में कोई आसक्ति नहीं थी. उनका विरक्त जीवन था. जब भोग में रह करके भी व्यक्ति अनासक्त बन जाता है तो योगी बनता है. बाहर से कदाचित् आप योगी न बन पाएं पर मन से तो योगी बन जाना चाहिए. कदाचित् बाहर से मैं योगी न बन पाऊं, मैं अपनी साधुता को प्राप्त न कर सकू, कोई चिन्ता नहीं. अन्तर्मन से तो अपने को साधु बना देना है. साधु शब्द का अर्थ है - सज्जन, सरल और साधक, मन को तो ऐसा साधु बना ही देना है कि मन के अन्दर पाप का प्रवेश न हो पाए. रामकृष्ण में क्या प्रचण्ड शक्ति थी. विवेकानन्द ईश्वर के अस्तित्व में बहुत कम विश्वास करने वाले व्यक्ति थे. जब स्नातक होकर के आए, साधुओं की खोज में जब निकले. तब उनके मन में एक विचार पैदा हुआ कि इस काली के मन्दिर में कोई सन्त रहता है, उनके दर्शन कर लूँ. जीवन में सर्वप्रथम वहां गये. किसी व्यक्ति ने कहा कि भाई ! जाओ और कोई साधना नहीं, कोई मन्त्र, नहीं तंत्र नहीं, कोई चमत्कार नहीं. ब्रह्मचारी आत्माओं का जीवन ही चमत्कार से परिपूर्ण होता है. संकल्प ही सिद्धि का कारण बनता है, जगत् की भौतिक सिद्धि तो उनको सहज में मिलती है. जब आध्यात्मिक दृष्टि आ जाती है. तब जगत् का कोई आकर्षण उस आत्मा को प्रभावित नहीं कर सकता. रामकृष्ण जब बीमार पड़े, उन्हें कैंसर हुआ तो बहुत सारे लोग उनके पास आए और निवेदन किया. बड़े-बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति कलकत्ता से आए और बोले, भगवन! सारी दुनिया को आप रोग से मुक्त करते हैं. उसकी भावना पूर्ण हो जाती है. लोग यहां आकर के शांति का अनुभव करते हैं. आपके चरणों में बैठकर आनन्द लेते हैं. हमें दर्द है कि आपको यह भयंकर व्याधि हो गई और कोई उपचार इस समय नहीं. उस ज़माने में कहां इसका उपचार था. निदान भी मुश्किल था तो उपचार कहां से होता. हमारी प्रार्थना है कि मां काली से आप प्रार्थना करें और यौगिक शक्ति के द्वारा इस MPRISE 107 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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