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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गुरुवाणी का आदेश दिया गया. जीवों की जयना के लिए और शरीर के अन्दर सदाचार और ब्रह्मचर्य के द्वारा जो उसने शक्ति-संपादन किया है, शक्ति प्राप्त की है उसके अन्दर संतुलन बना रहे. वह शारीरिक मानसिक दृष्टि से भयंकर नुकसान कर जाएगा क्योंकि उस प्रचण्ड शक्ति को सहन करने की क्षमता वर्तमान शरीर के अन्दर में नहीं है. उसके संतुलन को बनाए रखने के लिए अर्थिव उसको मिलता रहे, उघाड़े पांव चलने से शरीर के अन्दर जो अधिक शक्ति का संग्रह है, उसका विसर्जन हो जाएगा. यह इसके पीछे रहस्य है, उघाड़े पांव चलने का और कोई कारण नहीं. अगर इसका वह उपयोग नहीं करता है और शक्ति की मात्रा बढ़ती चली जाती है तो उसका परिणाम • क्रोध आएगा, चिड़चिड़ापन आएगा. भयंकर द्वेष पैदा होगा. दूसरे प्रकार से वह शक्ति उसके लिए हानिकारक बन जाएगी. इसीलिए यहां इसका महत्त्व रखा गया. ऐसी ही पवित्रता आपके अन्दर में आनी चाहिए. स्वामी विवेकानन्द के गुरु रामकृष्ण, पढ़े-लिखे नहीं थे. उन्हें बहुत सामान्य प्रकार का अक्षर ज्ञान था परन्तु वे हृदय से इतने सरल और सज्जन पुरुष थे कि उनके सदाचार का आप जीवन देखिए: अपनी स्त्री को भी मां कहकर बुलाते थे. मां की उपासना में सारे जगत् की सभी नारियों को वह माँ की दृष्टि से देखते और यहाँ तक कि स्वयं अपनी परिणीता स्त्री को भी इसी माँ की गरिमा से अलंकृत करते. कैसी पवित्रता थी उनके विचारों में, तभी वो विवेकानन्द जैसे शिष्य को पैदा कर सके. सदाचार के सौन्दर्य जीवन में उतार कर अपने विचारों को शिष्य के द्वारा वे आकार दे सके. यह शक्ति सदाचार के गुणों में है. दुराचारों से भरा हुआ जीवन दुःखमय होता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः" ऋषि-मुनियों का यह वाक्य है जो व्यक्ति आचार से भ्रष्ट होगा, वह विचारों से निश्चित नष्ट होने वाला है, और आचार से भ्रष्ट व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकता. "आचारहीनं न पुनन्ति वेदा". दुराचार का भयंकर तिरस्कार करते हुए ज्ञानियों कहासड़े हुए कान का कुत्ता किसी भी स्थान पर चला जाये कान में कीड़े घतपत करते हों, माथा सड़ चुका हो, दुर्गन्ध से भरा हो. उसकी दशा देखकर के हृदय में एक प्रकार की विकृत भावना आ जाएगी. कोई व्यक्ति अपने यहां उसे प्रवेश नहीं देगा. वह जहां जाएगा वहां तिरस्कार का पात्र बनेगा. ज्ञानियों ने कहा आध्यात्मिक जगत् में यदि कोई दुराचारी आत्मा आ जाये तो वह भी जगत् में इसी प्रकार से तिरस्कार का पात्र बनती है. उसके सुधरने का कोई उपाय नहीं रहता. सदाचार का महत्व दर्शाते हुए कहा गया है "प्राणभूतं चरित्रस्य " 106 — सदाचार को चरित्र का प्राण माना गया है. गृहस्थ जीवन में इसी सदाचार को सुरक्षित रखने के लिए विवाह-संस्कार का प्रावधान बताया गया है. हमारे पूर्वजों, ऋषि-मुनियों, For Private And Personal Use Only 可
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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