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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी महामन्त्री ने कहा कि राजा का आदेश है तो ले जाओ. उसे मालूम नहीं था कि इसका क्या उपयोग करेंगे. चादर मंगवा लिया. रात्रि में वही चादर ओढ़ता और थोड़े समय तक जब उसका प्रयोग किया तो सारी बीमारी चली गयी. उस रहस्य को जानने के लिए जब उस व्यक्ति से पूछा कि तुझे कैसे मालूम? । राजन्! मुझे केवल इतना मालूम था कि यह व्यक्ति सदाचारी है. पूर्ण ब्रह्मचारी है. बत्तीस वर्ष की अवस्था से जीवन-पर्यन्त इस व्यक्ति ने ब्रह्मचर्य का नियम लिया है और इसके अन्दर ऐसी एक शक्ति है जो मेरे अनुभव में आयी. यह चादर आपने जो ओढा. उसमें परमाणु औषधि का तत्त्व है. औषधीय गुण उसके अन्दर विद्यमान हैं और मुझे पूर्ण विश्वास था कि आप यदि चादर ओढ़ेंगे तो बीमारी चली जाएगी. यह कोई चमत्कार या जादू नहीं है, यह इसका वैज्ञानिक पक्ष है. सदाचार के गुण से, हृदय की पवित्रता से, सद्विचार के द्वारा शरीर से निकलने वाले प्रतिक्षण इलेक्ट्रोनस - परमाणु में ऐसी प्रचण्ड शक्ति आती है कि वे परमाणु यदि वासित बन जाएँ और उसका उपयोग यदि कोई बीमार व्यक्ति करता है तो बीमारी चली जाएगी. उसके विचार में भी समता आ जाएगी. उसके विचार के अन्दर भी सद्भावना प्रकट हो जाएगी. यह परमाणु का गुण होता है. जहां पर परमात्मा देशना देते हों, प्रवचन देते हों - उनके अतिशय में इतनी बड़ी विशेषता होती है कि बारह योजन तक (पूर्व काल के अन्दर यह एक प्रकार का माप था - इतने लम्बे-चौड़े विस्तार तक) कोई भी व्यक्ति उस परिधि में आ जाए तो उसके विचार में परिवर्तन आ जाएगा. विचार में एक आन्दोलन प्रगट हो जाएगा. उसके विचार सद्भावना से प्रतिष्ठित हो जाएंगे. “अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्संनिधौ वैरत्यागः" पातंजल योगदर्शन में महान् ऋषि ने लिखा कि जो व्यक्ति सदाचारी होगा, अहिंसक, होगा, विचार में जिसके पवित्रता होगी, उसके पास आने वाला व्यक्ति, उसके वर्तुल के अन्दर, उसकी परिधि में यदि कोई आ गया तो वह विचार से आकर्षित बन जाएगा. उसके विचारों में परिवर्तन आ जाएगा. वह पूर्ण सात्विक बन जाएगा. अनेक आत्माओं के प्रति सहज ही एक भाव प्रगट हो जाएगा. यह विशेषता है. ब्रह्मचारी आत्माओं का आशीर्वाद इसीलिए लिया जाता है. सदाचारी आत्माओं का चरण-स्पर्श इसीलिए किया जाता है. साधु पुरुषों के चरण-स्पर्श में यही तो रहस्य है. इसका वैज्ञानिक कारण है. शरीर में प्रतिक्षण "इलेक्ट्रोन्स” निकलता है. एक प्रकार की आभा निकलती है. जो आप चमड़े की आँख से नहीं देख सकते. वह दृष्टिगोचर नहीं होती. अदृश्य किरण है. शरीर की ज्यादातर शारीरिक शक्ति जो है, सद्विचार की जो प्रचण्ड शक्ति है उसको ये अर्थिव मिलता है. साधु उघाड़े पांव चलते हैं, ताकि शक्ति और शरीर के अन्दर संतुलन बना रहे. इसीलिए साधु संन्यासियों को उघाड़े पांव चलने 105 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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