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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी हम एक अंगुली उधर करते हैं तो तीन अंगुली आपकी तरफ आती हैं. उधर क्या देखता है इधर देख, कैसा है. तीन अंगुली को नहीं देखते कि वे मुझे क्या कह रही हैं. ये बहुमत हैं, तीन हैं वह तो एक है. हमारी नजर एक की तरफ जाती है, तीन की तरफ नहीं कि मैं स्वयं कैसा हूं. मुझे क्या अधिकार, किसी को कुछ कहँ, हर व्यक्ति अपने कर्म के अधीन है. "मित्ती मे सव्व भूएसु" परमात्मा ने कहा आप यह प्रतिज्ञा करिए, जगत् में किसी भी आत्मा से मेरी कोई शत्रुता नहीं. क्लेश ही संसार का बीज है. जीवन को जला कर के कोयला बना देगा, राख बना देगा. सारी शांति आपकी उससे नष्ट हो जाएगी. आत्मा की सारी समृद्धि लुट जाएगी. समत्व की भूमिका चाहिए. साढ़े बारह वर्ष तक परमात्मा महावीर ने सहन किया. सारे जगत् को उन्होंने कहा, जो आत्मा सहन करेगा, वही सिद्ध बनेगा. साधना के क्षेत्र में पहले सहन करता है. कोई भी शब्द आ जाए, शब्द का पान इस प्रकार से करें कि जहर भी अमृत बन जाए, सहन करने की ऐसी शक्ति आप विकसित करें कि जगत् की कोई शक्ति ध्यान भंग नहीं कर सके. समदृष्टि को प्राप्त करने के लिए, साधना के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने के लिए, सामायिक की साधना है. यह समत्व को प्राप्त करने की परम साधना है. धीरे-धीरे व्यक्ति उस क्षेत्र में समत्व के पथ पर आगे बढ़ता ही चला जाए फिर कोई भेदभाव नहीं रहेगा, कोई दीवार नहीं रहेगी. सारा संसार ही उसके लिए द्वार होगा. सभी आत्माओं के लिए उसके अन्दर प्रवेश संभव होगा. सभी आत्माओं को वह अपनी दृष्टि से देखेगा. सर्व को स्वयं में देखेगा. स्वयं को सर्व में देखेगा. यह मंगल दृष्टि उसमें आ जाएगी. संघर्ष की प्रवृत्ति चली जाएगी. संगम देव प्रभु वीर को पीड़ित कर रहा था और परमात्मा महावीर बिल्कुल मौन खड़े रहे, जरा भी द्वेष भाव की दृष्टि नहीं. कैसी उदारता थी, सहन करने की कैसी अपूर्व शक्ति थी, तब सिद्ध बनें. समभाव में यही चिन्तन कि यह बेचारा कर्म वश है, भूतकाल का कोई ऐसा कर्म उपार्जन किया है. मैं निमित्त बन करके आया हूं. इस बेचारी आत्मा का क्या होगा. कैसी सुन्दर भावना, कैसा मंगल चिन्तन. मुझे यह पसन्द नहीं कि इसके दुःख का निमित्त मैं बनूँ, दया के आंसू आ गए. दूसरी आत्माओं को दुःखी देखकर यदि आपका हृदय दर्द का अनुभव करे, दूसरों की पीड़ा का आंसू आपकी आंखों से आ जाए तब समझना मैं दयालु हूं. दूसरे का दर्द देखकर के आपकी आंख में आंसू आना चाहिए. दूसरों की पीड़ा का आपको अनुभव होना चाहिए. इस आत्मा की क्या दशा है. इस दुखी आत्मा को दुख से कैसे मुक्त करूं? तब जाकर के साधना से सुगन्ध पैदा होती है. यही है महावीर का सम्पूर्ण दर्शन. - 96 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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